SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६ तृतीयाध्यायस्य प्रथमः पादः ण्युट (१) ण्युट् च।१४७। प०वि०-ण्युट १।१ च अव्ययपदम्। अनु०-शिल्पिनि, ग इति चानुवर्तते। अन्वय:-गो धातोर्युट च शिल्पिनि। अर्थ:-गा-धातो: परो ण्युट्-प्रत्ययोऽपि भवति, शिल्पिनि कतरि सति। उदा०-(गा) गायतीति गायन: । स्त्रियाम्-गायनी। आर्यभाषा-अर्थ- (गः) गा (धातो:) धातु से परे (ण्युट) ण्युट् प्रत्यय (च) भी होता है (शिल्पिनि) यदि 'गा' धातु का कर्ता शिल्पी हो। उदा०-(गा) गायतीति गायन: । गानेवाला। स्त्री हो तो-गायनी। गानेवाली। सिद्धि-(१) गायन: । गै शब्दे' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से 'ण्युट्' प्रत्यय है। 'आदेच उपदेशेऽशिति (६।१।४५) से 'गै' धातु को आत्त्व, 'आतो युक् चिण्कृतो:' (७।३।३३) से 'युक्' आगम होता है। युवोरनाको' (७।११) से ‘ण्युट्' के 'यु' के स्थान में 'अन' आदेश है। (२) गायनी। ‘ण्युट्' प्रत्यय के टित् होने से 'टिड्ढाण' (४।१।१५) से स्त्रीलिङ्ग में 'डीप्' प्रत्यय होता है। (२) हश्च व्रीहिकालयोः ।१४८। प०वि०-ह: ५ ।१ च अव्ययपदम्, व्रीहि-कालयो: ७।२। स०-व्रीहिश्च कालश्च तौ व्रीहिकालौ, तयो:-व्रीहिकालयो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। अनु०-युट् इत्यनुवर्तते। अन्वय:-हश्च धातोर्युट् व्रीहिकालयोः । अर्थ:-हा-धातो: परोऽपि ण्युट्प्रत्ययो भवति, व्रीहौ काले च कर्तरि सति। उदा०-(हा) जहत्युदकम् इति हायना:। हायना नाम व्रीहयः । जाङ्गलदेशोद्भवाः । जिहीते-गच्छति पदार्थानिति-हायन: संवत्सरः । आर्यभाषा-अर्थ-(ह:) हा (धातो:) धातु से परे (च) भी (ण्युट) ण्युट् प्रत्यय होता है। (व्रीहिकालयोः) यदि हा' धातु का कर्ता व्रीहि-चावल और काल हो। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy