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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अन्वय:-ग्रहो धातो: ष्वुन् शिल्पिनि। अर्थ:-ग्रहो धातो: पर: ष्वुन् प्रत्ययो भवति, शिल्पिनि कर्तरि सति।
उदा-(नृत्) नृत्यतीति नर्तकः । (खन्) खनतीति खनक: । (रज्ज) रज्यतीति रजक: । स्त्रियाम्-नर्तकी। खनकी। रजकी।
आर्यभाषा-अर्थ- (ग्रह:) ग्रह (धातो:) धातु से परे (प्वुन्) ष्वुन प्रत्यय होता है (शिल्पिनि) यदि सम्बन्धित धातु का कर्ता शिल्पी हो।
उदा०-(नत्) नृत्यतीति नर्तकः । नाचनेवाला-नट। (खन्) खनतीति खनकः । शरीर के अंग पर नाम आदि खिननेवाला। (र) रज्यतीति रजकः । कपड़े रंगनेवाला रंगरेज। स्त्रीलिङ्ग में-नर्तकी। खनकी। रजकी।
सिद्धि-(१) नर्तकः । नृती गात्रविक्षेपें (दि०प०) धातु से इस सूत्र से वुन्' प्रत्यय है। युवोरनाकौ' (७।११) से वु' के स्थान में 'अक' आदेश होता है। पुगन्तलघूपधस्य च' (७।३।८६) से लघूपध गुण होता है।
(२) खनकः । ‘खनु अवदारणे' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् ।
(३) रजकः । रज रागे (दि०प०) धातु से पूर्ववत्। वा०-रजेरनुनासिकलोपश्च (३।१।१४५) से 'रज्ज' के अनुनासिक का लोप होता है।
(४) नर्तकी। वुन् प्रत्यय के षित् होने से स्त्रीलिङ्ग में षिद्गौरादिभ्यश्च' (४।१।४१) से 'डी' प्रत्यय होता है। ऐसे ही-खनकी, रजकी। थकन्
(१) गस्थकन्।१४६। प०वि०-ग: ५ १ थकन् ११ । अनु०-शिल्पिनि इत्यनुवर्तते। अन्वय:-गो धातोस्थकन् शिल्पिनि। अर्थ:-गा-धातो: परस्थकन् प्रत्ययो भवति, शिल्पिनि कर्तरि सति । उदा०-(गा) गायतीति गाथकः ।
आर्यभाषा-अर्थ-(गः) गा (धातो:) धातु से परे (थकन्) थकन् प्रत्यय होता है (शिल्पिनि) यदि 'गा' धातु का कर्ता शिल्पी हो।
उदा०-(गा) गायतीति गाथकः । गानेवाला, गवैय्या।।
सिद्धि-गाथकः । 'गै शब्दे' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से 'थकन्' प्रत्यय है। 'थकन्' प्रत्यय में न्' अनुबन्ध नित्यादिनित्यम्' (६।१।१९१) से आधुदात्त स्वर के लिये है।
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