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द्वितीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः इस सूत्र से 'इण्' धातु के स्थान में गम्' आदेश होता है। आर्धधातुकस्येड्वलादे:' (७।२।३५) से सन् प्रत्यय को इट् आगम, सन्यत:' (७।४।८९) से अभ्यास के अ को इ, कुहोश्चुः' (७।४।६२) से अभ्यास के ग को ज् और 'आदेशप्रत्यययोः' (८।३/५९) से सन् प्रत्यय के स को ष होता है। जिगमिष' इस सनाद्यन्त धातु से वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से वर्तमान काल में लट् प्रत्यय है। इङ् (गम्)
(१४) इङश्च।४८ | प०वि०-इङ: ६ १ च अव्ययपदम्। अनु०-आर्धधातुके गमि:, सनि इति चानुवर्तते । अन्वय:-इडश्च गमि: सनि आर्धधातुके।
अर्थ:-इङ: स्थाने च गमिरादेशो भवति, सनि आर्धधातुके विषये। इङ् धातुरयं नित्यमधिपूर्वः।
उदा०-अधिजिगांसते। अधिजिगांसेते। अधिजिगांसन्ते।
आर्यभाषा-अर्थ-(इड:) इङ् धातु के स्थान में (च) भी (गमि:) गमि आदेश होता है (सनि) सन् प्रत्यय सम्बन्धी (आर्धधातुके) आर्धधातुक विषय में।
उदा०-अधिजिगांसते। वह पढ़ना चाहते हैं। अधिजिगांसेते। वे दोनों पढ़ना चाहते हैं। अधिजिगांसन्ते । वे सब पढ़ना चाहते हैं।
सिद्धि-अधिजिगांसते। अधि+इड्+सन्। अधि+गम्+स। अधि+गम्+गम्+स। अधि+ग+गम्+स। अधि+गि+ गम्+स। अधि+जि+गाम्+स। अधिजिगांस+लट् । अधिजिगांस+शप्+त। अधिजिगांस+अ+ते। अधिजिगांसते।
'इङ् अध्ययने (अदा०प०) यह धातु नित्य अधि उपसर्गपूर्व है। आर्धधातुक सन् प्रत्यय के विषय में इस सूत्र से इङ्' के स्थान में 'गम्' आदेश हाता है। 'सन्यत:' (७।४।८९) से अभ्यास के 'अ' को 'इ' और 'कुहोश्चुः' (७।४।६२) से अभ्यास के 'ग्' को 'ज्' होता है। सन् प्रत्यय परे होने पर 'अज्झनगमां सनि (६।४।२६) से 'गम्' धातु को दीर्घ होता है। 'अधिजिगांस' इस सनाद्यन्त धातु से वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से वर्तमानकाल में लट् प्रत्यय है। यहां पूर्ववत् सनः' (१।४।६२) से आत्मनेपद होता है। इङ् (गाङ)
गाङ् लिटि।४६। प०वि०-गाङ् १।१ लिटि ७।१। अनु०-आर्धधातुके, इङ इति चानुवर्तते ।
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