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________________ द्वितीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः ४६१ आर्यभाषा-अर्थ-(हन:) हन् धातु के स्थान में (वध) वध आदेश होता है (लिडि) लिङ्लकार सम्बन्धी (आर्धधातुके) आर्धधातुक विषय में। वध' यह अकारान्त आदेश है। उदा०-वध्यात्। वह वध करे। वध्यास्ताम् । वे दोनों वध करें। वध्यासुः । वे सब वध करें। वध मारना। सिद्धि-वध्यात् । हन्+लिङ् । वध+यासुट्+तिप्। वध्+या+त् । वध्यात् । यहां हन् हिंसागत्योः' (अदा०प०) धातु से 'आशिषि लिङ्लोटौं' (३।३।१७३) से आशीर्वाद अर्थ में लिङ् प्रत्यय और इस सूत्र से हन् के स्थान में वध आदेश है। यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च' (३।४।१०३) से यासुट आगम, किदाशिषि (३।४।१०४) से कित्त्व, 'अतो लोप:' (६।४।४८) से आर्धधातुक विषय में वध के अकार का लोप, 'स्को: संयोगाद्योरन्ते च (८।२।२९) से यासुट् के सकार का लोप होता है। लिडाशिषि (३।४।११६) से 'आशीर्लिङ्' आर्धधातुक होता है। हन् (वध) ___(६) लुङि च।४३। प०वि०-लुङि ७१ च अव्ययपदम् । अनु०-आर्धधातुके हन:, वध इति चानुवर्तते। अन्वय:-हनो वधो लुङि आर्धधातुके। अर्थ:-हन: स्थाने वध-आदेशो भवति, चा लुङि चार्धधातुके विषये। उदा०-अवधीत् । अवधिष्टाम् । अवधिषुः । आर्यभाषा-अर्थ:-(हन:) हन् धातु के स्थान में (वध) वध आदेश होता है, (लुङि) लुङ् सम्बन्धी (च) भी (आर्धधातुके) आर्धधातुक विषय में। उदा०-अवधीत्। उसने वध किया। अवधिष्टाम्। उन दोनों ने वध किया। अवधिषुः । उन सबने वध किया। सिद्धि-अवधीत् । हन्+लुङ्। अट्+व+च्लि+लुङ्। अ+वध+सिच्+तिप् । अ+व+इट्+स्+ईट्+त्। अ+व+इ+व+ई+त् । अवधीत् । __यहां हन् हिंसागत्योः ' (अदा०प०) धातु से लुङ् (३।२।११०) से भूतकाल में लुङ् प्रत्यय और इस सूत्र से आर्धधातुक विषय में वध आदेश होता है। 'अतो लोप:' (६।४।४८) से वध के अकार का लोप और उसके स्थानिवद्भाव से वदव्रजहलन्तस्याच:' (७।२।३) से वध को वृद्धि नहीं होती है। आर्धधातुकस्येड्वलादेः' (७।२।३५) से सिच् को इट् आगम, 'अस्तिसिचोऽप्रक्ते (७।३।९६) से तिप् को ईट् आगम और 'इट ईटि' (७।२।२८) से सिच् के सकार का लोप होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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