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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (२) पूर्वाण: । पूर्व+सु+अह्न डस् । पूर्वाहन्+अच् । पूर्वाह्न+अ। पूर्वाहन्+अ। पूर्वाह्णः ।
यहां पूर्वापराधरोत्तरमेकदेशिनकाधिकरणे' (२।२।१) से पूर्व और अहन् शब्द का एकदेशी तत्पुरुष समास है। 'रात्राह:सखिभ्यष्टच् (५।४।९१) से समासान्त टच प्रत्यय है। 'अह्नोऽह्न एतेभ्यः' (५ ।४।८८) से अहन् के स्थान में अह्न आदेश होता है। 'अनोऽदन्तात् (८।४१७) से अह्न के न को णत्व होता है। यहां पूर्ववत् उत्तरपद अहन् शब्द के समान नपुंसकलिङ्ग प्राप्त था इस सूत्र से समस्तपद पुंलिङ्ग होता है।
(३) व्यह: । द्वि+सु+अहन्+सु। द्वयहन्+टच् । द्वयह+अ। व्यह+सु । व्यहः।
यहां तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे च' (२।१।५१) से द्वि और अहन् शब्द का समाहार अर्थ में द्विगुतत्पुरुष समास है। न संख्यादे: समाहारे' (५।४।८९) से अहन् के स्थान में अह्न आदेश नहीं होता है। 'अष्टखोरेव' (६।४।१४५) से अहन् के टि-भाग (अन्) का लोप हो जाता है। तत्पुरुषः
(१३) अपथं नपुंसकम् ।३०। प०वि०-अपथम् १।१ नपुंसकम् १।१ । स०-न पन्था इति अपथम् (नञ्तत्पुरुषः)। अनु०-तत्पुरुषः' इत्यनुवर्तनीयम् । अन्वय:-अपथमित्यत्र तत्पुरुषे नपुंसकम् । अर्थ:-अपथम् इत्यत्र तत्पुरुष समासे नपुंसकलिङ्गं भवति । उदा०-न पन्था इति अपथम् । अपथमिदम् । अपथानि गाहते मूढः ।
आर्यभाषा-अर्थ-(अपथम्) अपथ इस तत्पुरुष समास में (नपुंसकम्) नपुंसकलिङ्ग होता है।
उदा०-न पन्था इति अपथम् । जो ठीक मार्ग नहीं है-कुपथ। अपथमिदम् । यह कुमार्ग है। अपथानि गाहते मूढः । मूर्ख कुमार्ग में धक्के खाता है।
सिद्धि-अपथम् । नञ्+सु+पथिन्+सु। अ+पथिन्+अ। अपथ्+अ। अपथ+सु। अपथ+अम्। अपथम्।
यहां 'न' (२।२।६) से नञ्तत्पुरुष समास है। 'ऋग्पूरब्धःपथामनक्षे' (५।४।७४) से समासान्त 'अ' प्रत्यय है। 'नस्तद्धिते (६।४।१४४) से पथिन् के टि-भाग (इन्) का लोप हो जाता है। यहां 'परवल्लिङ्ग द्वन्द्वतत्पुरुषयो:' (२।२।२६) से उत्तरपद पथिन् शब्द के समान समस्तपद पुंलिङ्ग प्राप्त था, इस सूत्र से नपुंसकलिङ्ग होता है।
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