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द्वितीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः आचिख्यासा, तदादेराचिख्यासा इति तदाद्याचिख्यासा, तस्याम्तदाद्याचिख्यासायाम् (षष्ठीतत्पुरुषः) ।
अनु०-नपुंसकम्, तत्पुरुषोऽनकर्मधारय इति चानुवर्तते।
अन्वय:-अनञ्कर्मधारय उपज्ञोपक्रमान्तस्तत्पुरुषो नपुंसकं तदाद्याचिख्यासायाम्।
अर्थ:-नकर्मधारयभिन्न उपज्ञान्त उपक्रमान्तश्च तत्पुरुषो नपुंसकलिङ्गो भवति, तदाद्याचिख्यासायाम्=तयो: प्रारम्भस्य प्रवक्तुमिच्छायां गम्यमानायाम्।
उदा०-(१) उपज्ञा-पाणिनेरुपज्ञा इति पाणिन्युपज्ञम्। पाणिन्युपज्ञमकालकं व्याकरणम्। व्याडेरुपज्ञा इति व्याड्युपज्ञम्। व्याड्युपशं दशहुष्करणम्।
(२) उपक्रम:-आद्यस्योपक्रम इति आधुपक्रमम्। आद्योपक्रम प्रासाद: । नन्दस्योपक्रम इति नन्दोपक्रमम् । नन्दोपक्रमाणि मानानि ।
आर्यभाषा-अर्थ-(अनकर्मधारयः) नञ् और कर्मधारय से भिन्न (उपज्ञा-उपक्रमम्) उपज्ञा और उपक्रम शब्द जिसके अन्त में हैं, ऐसा (तत्पुरुषः) तत्पुरुष समास (नपुंसकम्) नपुंसकलिङ्ग होता है, यदि वहां (तदाद्याचिख्यासायाम्) उन उपज्ञा और उपक्रम के प्रारम्भ के कथन की इच्छा हो।
उदा०-उपज्ञा-पाणिन्युपज्ञमकालकं व्याकरणम् । पाणिनिमुनि ने अपने उपज्ञान से सर्वप्रथम काल-लक्षणरहित व्याकरणशास्त्र की रचना की। व्याड्युपज्ञं दशहुष्करणम् । व्याडि मुनि ने अपने उपज्ञान से सर्वप्रथम दश हुए शब्दों सहित काल-लक्षणयुक्त व्याकरणशास्त्र की रचना की। पाणिनि के वृत्' शब्द के समान व्याडि का हुष्' शब्द समाप्ति का सूचक है।
(२) उपक्रम-आद्योपक्रमं प्रासादः। आद्य (विश्वकर्मा) शिल्पी ने सर्वप्रथम प्रासाद-महल बनाने का कार्य प्रारम्भ किया। नन्दोपक्रमाणि मानानि। नन्द नामक राजा ने सर्वप्रथम मान-बाटों से तोलने की पद्धति प्रारम्भ की।
डा० वासुदेव शरण अग्रवाल का मत है कि मगध देश के सम्राट नन्द पाणिनि के मित्र थे। मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में पाणिनिमुनि की शास्त्रकार परीक्षा हुई थी। राजा नन्द ने ही उक्त मान-पद्धति का उपक्रम किया था। (पा० का० भारतवर्ष पृ० ४७२-७३)
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