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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
समस्त पद 'स नपुंसकम्' (२।४।१७ ) से नपुंसकलिङ्ग होता है। 'ह्रस्वो नपुंसके प्रातिपदिकस्य' (१/२/४७ ) से इरावती शब्द को ह्रस्व हो जाता है। उद्धय शब्द 'भद्यो नदी (३ । १ । ११५ ) से नदी अर्थ में क्यप् प्रत्ययान्त निपातित है।
उद्ध्य नदी का वर्तमान नाम उझ है। यह जम्मू प्रान्त के जसरोटा जिले में होती हुई कुछ दूर पंजाब में बहकर गुरुदासपुर जिले में रावी नदी के दाहिने किनारे पर मिल गई है। इरावती वर्तमान रावी नदी का नाम है (पा०का० भारतवर्ष पृ० ५२) ।
(२) गङ्गाशोणम् | गङ्गा + शोण+सु । गङ्गशोण+ सु । गङ्गाशोणम् ।
यहां गङ्गा और शोण इन नदीवाची शब्दों का द्वन्द्व समास है। ये दोनों शब्द भिन्न लिङ्गवाले हैं। इस सूत्र से इनके द्वन्द्व समास में एकवचन का विधान किया गया है। शोणनदी गोंडवाना से निकलकर पटना के निकट गङ्गा में गिरती है ।
(३) कुरुकुरुक्षेत्रम् | कुरु+सु+कुरुक्षेत्र+सु । कुरुकुरुक्षेत्र + सु । कुरुकुरुक्षेत्रम् | ऐसे ही-कुरुकुरुजाङ्गलम् ।
यहां कुरु और कुरुक्षेत्र इन देशवाची शब्दों का द्वन्द्व समास है। दोनों भिन्न लिङ्गवाले हैं । कुरु शब्द पुंलिङ्ग और कुरुक्षेत्र शब्द नपुंसकलिङ्ग है। इस सूत्र से इनके द्वन्द्व समास में एकवचन का विधान किया गया है। दिल्ली और मेरठ का प्रदेश कुरु कहाता था जिसकी राजधानी हस्तिनापुर थी । कुरुक्षेत्र लोकप्रसिद्ध है। रोहतक - हिसार क्षेत्र का नाम-कुरुजाङ्गल है।
क्षुद्रजन्तूनाम्
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(७) क्षुद्रजन्तवः । ८
प०वि० - क्षुद्रजन्तवः १ । ३ ।
सo - क्षुद्राश्च ते जन्तव इति क्षुद्रजन्तव: ( कर्मधारयः ) ।
अनु० - एकवचनं द्वन्द्व इति चानुवर्तते ।
अन्वयः - क्षुद्रजन्तूनां द्वन्द्व एकवचनम्।
अर्थ:- क्षुद्रजन्तुवाचिनां शब्दानां द्वन्द्व एकस्यार्थस्य वाचको भवति । उदा०-यूकाश्च लिक्षाश्च एतासां समाहारो यूकालिक्षम् । दंशाश्च मशकाश्च एतेषां समाहारो दंशमशकम् ।
आर्यभाषा-अर्थ- (क्षुद्रजन्तवः) छोटे-छोटे जन्तुवाची शब्दों का ( द्वन्द्वः) द्वन्द्व समास (एकवचनम्) एक अर्थ का वाचक होता है ।
उदा०-यूकाश्च लिक्षाश्च एतासां समहारो यूकालिक्षम्। जूं और लीख जन्तुओं का संघात । दंशाश्च मशकाश्च एतेषां समाहारो दंशमशकम् । डांस और मच्छरों का संघात
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