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________________ द्वितीयाध्यायस्य तृतीयः पादः ४४३ (१२) शानन्-सोमं पवमानः । (१३) चानश्-शिखण्डं वहमान: । (१४) शतृ-अधीयन् पारायणम् । (१५) तृन्-कर्ता कटान्। वदिता जनापवादान्। आर्यभाषा-अर्थ-(लतनाम्) ल, उ, उक, अव्यय, निष्ठा, खलर्थ और तृन् इनके प्रयोग में (षष्ठी) षष्ठी विभक्ति (न) नहीं होती है। उदा०-(१) ल-ल से लकार के स्थान में जो आदेश विधान किये गये हैं, उनका ग्रहण किया जाता है, जैसे-शत, शानच् कानच् क्वसु, कि और किन् प्रत्यय। इनके उदाहरण निम्नलिखित हैं (१) शत-ओदनं पचन् । भात को पकाता हुआ। (२) शान-ओदनं पचमानः । भात को पकाता हुआ। (३) कानच-स ओदनं पेचानः। उसने भात पकाया। (४) क्वसु-स ओदनं पेचिवान् । उसने भात पकाया। (५) कि-पपि: सोमम् । सोम का पान करनेवाला। (६) किन्-ददिर्गाः । गौओं का दान करनेवाला। (७) उ-कटं चिकीर्षुः । चटाई बनाने का इच्छुक। ओदनं बुभुक्षुः। भात को खाने का इच्छुक (८) उक-वाराणसीमागामुकः । बनारस में आनेवाला। (९) अव्यय-कटं कृत्वा । चटाई बनाकर। ओदनं भुक्त्वा । भात को खाकर। (१०) निष्ठा-(क्त) देवदत्तेन कृतम् । देवदत्त ने किया। (क्तवतु)-ओदनं भुक्तवान् यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त ने भात खाया। (११) खलर्थ-ईषत्कर: कटो भवता । आपके लिये चटाई बनाना कठिन कार्य नहीं है। ईषत्पान: सोमो भवता। आपके लिये सोम का पान करना कठिन कार्य नहीं है। यहां तृन्' एक प्रत्याहार का ग्रहण किया है। यह प्रत्याहार "लट: शतशानचावप्रथमासमानाधिकरणे (३।२।२२४) के 'शत' के 'त' से लेकर तन् (३।२।२५) तृन्' प्रत्यय के न्' तक ग्रहण किया जाता है। इससे इस प्रतिषेध में शानन्, चानश्, शतृ और तृन् प्रत्यय का ग्रहण होता है। (१२) शानन्-सोमं पवमानः । सोम का पान करनेवाला। (१३) चानश्-शिखण्डं वहमान: । शिखा को धारण करनेवाला। (१४) शतृ-अधीयन् पारायणम् । पारायण का सहजतापूर्वक अध्ययन करनेवाला। (१५) तृन्-कर्ता कटान् । चटाइयों को बनानेवाला। सिद्धि-(१) ओदनं पचन् । डुपचष् पाके' (भ्वा०प०) पच+लट् । पच्+शतृ । पच्+शप्+अत् । पचत्+सु। पचन्। यहां पच्' धातु से 'वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से लट् प्रत्यय और उसके स्थान में लट: शतृशानचावप्रथमासमानाधिकरणे' (३।२।१२४) से 'शत' आदेश है। इस कृत् प्रत्यय के प्रयोग में 'ओदन' शब्द में कर्मणि द्वितीया' (२।३।२) से द्वितीया विभक्ति है। यहां कर्तकर्मणोः' (२।३।६५) से षष्ठी विभक्ति प्राप्त थी, उसका इस सूत्र से प्रतिषेध किया गया है। ऐसे ही सब उदाहरणों में समझ लेवें। (२) पचमानः । पच्+शानच् । पच्+मुक्+आन। पच्+म्+आन। पचमान+सु । पचमानः । यहां पूर्ववत् शानच् प्रत्यय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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