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________________ द्वितीयाध्यायस्य तृतीयः पादः ४३७ स०-चतुर्थ्या अर्थ इति चतुर्थ्यर्थः, तस्मिन्-चतुर्थ्यर्थ (षष्ठीतत्पुरुषः)। अनु०-षष्ठी इत्यनुवर्तते। अन्वय:-छन्दसि चतुर्थ्यर्थ बहुलं षष्ठी। अर्थ:-छन्दसि विषये चतुर्थी-अर्थे बहुलं षष्ठी विभक्तिर्भवति । पक्षे चतुर्थी विभक्तिर्भवति। ___ उदा०-(१) षष्ठी-गोधा कालका दार्वाघाटस्ते वनस्पतीनाम् (यजु० २४ ।३५) (२) चतुर्थी-गोधा कालका दार्वाघाटस्ते वनस्पतिभ्यः । आर्यभाषा-अर्थ-(छन्दसि) वेद विषय में (चतुर्थ्यर्थ) चतुर्थी विभक्ति के अर्थ में (बहुलम्) प्रायश: (षष्ठी) षष्ठी विभक्ति होती है। पक्ष में चतुर्थी विभक्ति होती है। उदा०-(१) षष्ठी-गोधा कालका दार्वाघाटस्ते वनस्पतीनाम् । (२)चतुर्थी-गोधा कालका दार्वाघाटस्ते वनस्पतिभ्यः । (यजु० २४१३५) वनस्पतियों के गुण-ज्ञान के लिये गोधागोह, कालक=पनियां सांप और दार्वाघाट-कठफोड़ा प्राणियों का उपयोग करें। सिद्धि-उपरिलिखित उदाहरण में वनस्पति' शब्द में चतुर्थी विभक्ति के अर्थ में षष्ठी और चतुर्थी विभक्ति है। करणे षष्ठी (१५) यजेश्च करणे।६३। प०वि०-यजे: ६।१ च अव्ययपदम्, करणे ७।१। अनु०-बहुलं छन्दसि षष्ठी इति चानुवर्तते। अन्वय:-छन्दसि यजेश्च करणे बहुलं षष्ठी। अर्थ:-छन्दसि विषये यज-धातो: करणे कारके षष्ठी विभक्तिर्भवति । पक्षे तृतीया विभक्तिर्भवति। उदा०-(१) षष्ठी-घृतस्य यजते । सोमस्य यजते। (२) तृतीया-घृतेन यजते। सोमेन यजते। आर्यभाषा-अर्थ-(छन्दसि) वेद विषय में (यजे:) यज-धातु के (करणे) करण कारक में (बहुलम्) प्रायश: (षष्ठी) षष्ठी विभक्ति होती है। पक्ष में तृतीया विभक्ति होती है। उदा०-(१) षष्ठी-घृतस्य यजते। घी से यज्ञ करता है। सोमस्य यजते। सोम से यज्ञ करता है। (२) तृतीया-घृतेन यजते । सोमेन यजते। अर्थ पूर्ववत् है। सिद्धि-उपरिलिखित उदाहरणों में करणभूत 'घृत' और 'सोम' शब्द में षष्ठी और तृतीया विभक्ति है। कर्तृकरणयोस्तृतीया' (२।३।१८) से पक्ष में तृतीया विभक्ति होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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