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________________ ४३० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् याद करता है। जहां केवल माता को स्मरण करता है वहां- 'मातरं स्मरति देवदत्तः ' साधारण कर्म में 'कर्मणि द्वितीया' (२/३/२) से द्वितीया विभक्ति होती है। ऐसे ही अन्य उदाहरणों में भी समझ लेवें । कर्मणि षष्ठी (५) कृञः प्रतियत्ने । ५३ । प०वि० - कृञः ६ । १ प्रतियत्ने ७ । १ । सतो गुणान्तराधानं प्रतियत्नः तस्मिन् प्रतियत्ने । अनु० - षष्ठी शेषे, कर्मणि इति चानुवर्तते । अन्वयः - प्रतियत्ने कृञः शेषे कर्मणि षष्ठी । अर्थः-प्रतियत्ने=गुणान्तराधानेऽर्थे वर्तमानस्य कृञ्- धातोः शेषे कर्मणि करके षष्ठी विभक्तिर्भवति । उदा०-इन्धनम् उदकस्य उपस्कुरुते । आर्यभाषा- अर्थ - ( प्रतियत्ने) गुणान्तर - आधान करने अर्थ में विद्यमान (कृञः) कृञ् धातु के (शेषे) शेष (कर्मणि) कर्म कारक में (षष्ठी) षष्ठी विभक्ति होती है। उदा०-इन्धनम् उदकस्य उपस्कुरुते । इन्धन जल के शीतलता गुण को बदलता है। सिद्धि-इन्धनम् उदकस्य उपस्कुरुते । उप+कृ+लट् । उप+सुट्+कृ+उ+ते । उप+स्+कुर्+उ+ते। उपस्कुरुते । 'डुकृञ् करणें' (तना० उ०) धातु सामान्यत करने अर्थ में है। 'अनेकार्था हि धातवो भवन्ति' के प्रमाण से यह प्रतियत्न अर्थ में भी है। जब इसका प्रतियत्न अर्थ में प्रयोग होता है तब इसके शेष कर्म में षष्ठी विभक्ति होती है। यह धातु उभयपद है किन्तु जब यह प्रतियत्न अर्थ में होती है तब 'गन्धना० उपयोगेषु कृञः ' (१।३।३२) से आत्मनेपद ही होता है, परस्मैपद नहीं । जब शेष कर्म की विवक्षा नहीं होती तब कर्म में 'कर्मणि द्वितीया' (२ 1३1२ ) से द्वितीया विभक्ति होती है- इन्धनम् उदकम् उपस्कुरुते। इन्धन जल को उपस्कृत (संस्कृत) करता है। कर्मणि षष्ठी (६) रुजार्थानां भाववचनानामज्वरेः । ५४ । प०वि०-रुजा-अर्थानाम् ६ । ३ भाव - वचनानाम् ६ । ३ अज्वरे: ६ । १ । स०-रुजा अर्थो येषां ते रुजार्था:, तेषाम् - रुजार्थानाम् (बहुव्रीहि: ) । धात्वर्थो भाव:, वक्तीति वचन, कर्तरि ल्युट्प्रत्ययः, वचनः = कर्ता इत्यर्थः । भावो वचनो येषां ते भाववचना:, तेषां भाववचनानाम् (बहुव्रीहि: ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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