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प्रथमाध्यायस्य प्रथमः पादः
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आर्यभाषा - अर्थ - (ऐ औच) ऐ, औ इन दो वर्णों का तथा पूर्व वर्णों का भी उपदेश करके अन्त में चकार अनुबन्ध किया है, अच्, इच्, एच् ऐच् प्रत्याहारों के लिये । अच्-अचः परस्मिन् पूर्वविधौ (१1१/५७ ) इच् - इच एकाचोऽम्प्रत्ययवच्च ( ६ |३।६८) एच् - एचोऽयवायाव: ( ६ । २ । ७८ ) । ऐच्-वृद्धिरादैच् (१1१1१) ।
ह य व र ट् । ५ ।
प०वि०-ह य व र ट् १ ।१ ।
अर्थ:-ह, य, व, र इत्येतान् पूर्वांश्च वर्णान् उपदिश्यान्ते टकारमितं करोति, अट् प्रत्याहारार्थम् ।
आर्यभाषा-अर्थ- (ह य व र टू ) ह, य, व, र इन चार वर्णों का तथा पूर्व वर्णों का भी उपदेश करके अन्त में टकार अनुबन्ध किया गया है, अट् प्रत्याहार के लिये । अट्- शश्छोउटि (८/४ ।६३) इत्यादि ।
लण्।६।
प०वि०-लण् १ ।१ ।
अर्थ:- (लण्) ल इत्येकं वर्णं पूर्वांश्च वर्णान् उपदिश्यान्ते णकारमितं करोति, अणु, इण्, यण् प्रत्याहारार्थम् ।
आर्यभाषा - अर्थ - (लग्) ल इस एक वर्ण का तथा पूर्व वर्णों का भी उपदेश करके अन्त में कार अनुबन्ध किया है, अण् इण्, यण् प्रत्याहारों के लिये । अण्-अणुदित्सवर्णस्य चाप्रत्यय: ( १ । १ । ६७ ) इण्- इण्को: ( ८1३1५७) यण्-इको यणचि (६।१।७७) इत्यादि ।
सूत्र
विशेष- अण् दो प्रत्याहार बनाये हैं। पहला अ इ उ ण् सूत्र में और दूसरा इस में। इस सूत्र वाले अण् का अष्टाध्यायी में केवल अणुदित्सर्वस्य चाप्रत्यय: (१1१/६७) इसी सूत्र में ग्रहण किया जाता है। अन्यत्र सर्वत्र अष्टाध्यायी में 'अ इ उ ण्' के अण् प्रत्याहार का ग्रहण होता है ।
ञ म ङ ण न म् ।७।
प०वि० ञ म ङ ण न म् १ । १ ।
अर्थ:- ञ, म, ङ, ण न इत्येतान् पूर्वांश्च वर्णान् उपदिश्यान्ते मकारमितं करोति, अम् यम् ङम् प्रत्याहारार्थम् ।
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आर्यभाषा - अर्थ - (ञ म ङ नम्) ञ, म, ङ, ण, न इन पांच वर्णों का तथा पूर्व वर्णों का भी उपदेश करके अन्त में मकार अनुबन्ध किया है, अम्, यम्, ङम् प्रत्याहारों
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