SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 418
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः ३७७ सिद्धि-उपदशा: । उप+सु+दश+जस् । उपदश+जस् । उपदशाः । यहां अव्यय, उप सुबन्त तथा संख्यावाची दश सुबन्त के साथ बहुव्रीहि समास किया गया है। उप और दश दोनों पद अपने अर्थ से अन्य संख्येये गणनीय पुरुष पद के अर्थ के वाचक हैं। दिङ्नामानि दिङ्नामान्यन्तराले।२६। प०वि०-दिक्-नामानि १।३ अन्तराले ७१। स०-दिशां नामानीति दिङ्नामानि (षष्ठीतत्पुरुषः) । अनु०-विभाषा, बहुव्रीहि: इति चानुवर्तते । अन्वय:-दिङ्नामानि सुपोऽन्तराले परस्परं समासो बहुव्रीहिः । अर्थ:-दिशावाचीनि सुबन्तानि तदन्तरालेऽर्थे परस्परं विकल्पेन समस्यन्ते, बहुव्रीहिश्च समासो भवति । उदा०-उत्तरस्या: पूर्वस्याश्च दिशाया अन्तरालमिति-उत्तरपूर्वा दिक् (एशानी)। पूर्वस्या दक्षिणायाश्च दिशाया अन्तरालमिति पूर्वदक्षिणा (आग्नेयी) दक्षिणस्या: पश्चिमायाश्च दिशाया अन्तरालमिति दक्षिणपश्चिमा (नैऋति:)। पश्चिमाया उत्तरस्याश्च दिशाया अन्तरालमिति पश्चिमोत्तरा (वायवी)। ___आर्यभाषा-अर्थ-(दिङ्नामानि) दिशावाची सुबन्तों का (अन्तराले) उनके बीच की दिशा के कहने में परस्पर (विभाषा) विकल्प से समास होता है और उसकी (बहुव्रीहिः) बहुव्रीहि संज्ञा होती है। उदा०-उत्तरस्या: पूर्वस्याश्च दिशाया अन्तरालमिति उत्तरपूर्वा दिक् । उत्तर और पूर्व दिशा के बीच की दिशा, जिसे ऐशानी कहते हैं। पूर्वस्या दक्षिणायाश्च दिशाया अन्तरालमिति पूर्वदक्षिणा। पूर्व और दक्षिण दिशा के बीच की दिशा जिसे आग्नेयी कहते हैं। दक्षिणस्या: पश्चिमायाश्च दिशाया अन्तरालमिति दक्षिणपश्चिमा। दक्षिण और पश्चिम दिशा के बीच की दिशा जिसे नैऋति कहते हैं। पश्चिमाया उत्तरस्याश्च दिशाया अन्तरालमिति पश्चिमोत्तरा। पश्चिम और उत्तर दिशा के बीच की दिशा जिसे वायवी कहते हैं। सिद्धि-उत्तरपूर्वा । उत्तरा+डस्+पूर्वा+डस्। उत्तरा+पूर्वा। उत्तरपूर्वा+सु। उत्तरपूर्वा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy