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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा-अर्थ-(षष्ठी) षष्ठी-अन्त सुबन्त का (पूजायाम्) पूजा अर्थ में वर्तमान (क्तेन) क्त-प्रत्ययान्त समर्थ सुबन्त के साथ (च) भी समास नहीं होता है।
उदा०-राज्ञां मतो देवदत्तः । देवदत्त राजाओं के द्वारा सम्मानित है। राज्ञां बुद्धो यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त राजाओं के द्वारा संज्ञात है। राज्ञां पूजितो ब्रह्मदत्तः । ब्रह्मदत्त राजाओं के द्वारा पूजित है।
सिद्धि-राज्ञां मतो देवदत्तः। यहां 'मतिबुद्धिपूजार्थेभ्यश्च' (३।२।१८८) से वर्तमानकाल में पूजा अर्थ में क्त प्रत्यय है। क्तस्य च वर्तमाने (२।३।६७) से वर्तमानकाल में विहित क्त-प्रत्यय के योग में षष्ठी विभक्ति होती है। प्रकृत सूत्र से उक्त षष्ठीविभक्ति के समास का प्रतिषेध किया गया है। ऐसे ही-राज्ञां बुद्ध:, राज्ञां पूजितः । षष्ठी (अधिकरणवाचिना)
(६) अधिकरणवाचिना च।१३। प०वि०-अधिकरणवाचिना ३।१ च अव्ययपदम् । अनु०-षष्ठी, न, क्तेन इति चानुवर्तते। अन्वय:-षष्ठी सुप् अधिकरणवाचिना क्तेन सुपा सह न समासः ।
अर्थ:-षष्ठ्यन्तं सुबन्तं अधिकरणवाचिना क्त-प्रत्ययान्तेन समर्थेन सुबन्तेन च सह न समस्यते ।
उदा०-इदमेषां यातम् । इदमेषां भुक्तम्।
आर्यभाषा-अर्थ-(षष्ठी) षष्ठी-अन्त सुबन्त का (अधिकरणवाचिना) अधिकरणवाची (क्तेन) क्त-प्रत्ययान्त समर्थ सुबन्त के साथ (च) भी समास (न) नहीं होता है।
उदा०-इदमेषां यातम् । यह इनके जाने का मार्ग है। इदमेषां भुक्तम् । यह इनके भोजन का स्थान है।
सिद्धि-इदमेषां यातम् । यहां या गतौ' (अदा०प०) धातु से क्तोऽधिकरणे च धौव्यगतिप्रत्यवसानार्थेभ्यः' (३।४।७६) से अधिकरण कारक में क्त-प्रत्यय है। प्रकृत सूत्र से उसके साथ षष्ठी समास का प्रतिषेध किया गया है। ऐसे ही-इदमेषां भुक्तम् । कर्मणि षष्ठी
(७) कर्मणि च।१४। प०वि०-कर्मणि ७१ च अव्ययपदम् । अनु०-षष्ठी, न इति चानुवर्तते।
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