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________________ ३१२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यहां स्त्रिया: पुंवद्' (६।३।३४) से उन्मत्ता' शब्द को पुंवद्भाव होता है। शेष कार्य पूर्ववत् (२।१।१७) है। ऐसे ही-लोहितगङ्गम्, उन्मत्तगङ्गम् । विशेष-यह विभाषा के अधिकार में भी नित्य समास है क्योंकि विग्रह वाक्य से संज्ञा का ज्ञान नहीं हो सकता। इति अव्ययीभावप्रकरणम् । तत्पुरुषप्रकरणम् अधिकार: (१) तत्पुरुषः ।२२। प०वि०-तत्पुरुषः १।१ । अर्थ:-'तत्पुरुषः' इत्यधिकारोऽयम्, ‘शेषो बहुव्रीहिः' (२।२।२३) इति यावत्। आर्यभाषा-अर्थ-(तत्पुरुषः) यहां से लेकर शेषो बहुव्रीहिः' (२।२।२३) तक तत्पुरुष संज्ञा का अधिकार है। द्विगु: (२) द्विगुश्च ।२३। प०वि०-द्विगु: ११ च अव्ययपदम् । अन्वय:-द्विगुश्च समासस्तत्पुरुषः । अर्थ:-द्विगुश्च समासस्तत्पुरुषसंज्ञको भवति । उदा०-पञ्चराजी । दशराजी । पञ्चराजम् । दशराजम् । द्विगोस्तत्पुरुषे समासान्ता: प्रयोजनम्। आर्यभाषा-अर्थ-(द्विगु:) द्विगु समास की (च) भी तत्पुरुष संज्ञा होती है। उदा०-पञ्चराजी। दशराजी। पञ्चराजम् । दशराजम् । पांच राजाओं का समूह। दश राजाओं का समूह। द्विगु समास की तत्पुरुष संज्ञा का यह प्रयोजन है कि उससे समासान्त प्रत्यय हो जाये। सिद्धि-पञ्चराजी। पञ्च+ राजन्+टच् । पञ्च+राजन्+अ। पञ्चराज+डीम् । पञ्च+राज+ई। पञ्चराजी+सु। पञ्चराजी। यहां तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे च' (२।१।५०) से समाहार अर्थ में द्विगु समास है। इस सूत्र से द्विगु समास की तत्पुरुष संज्ञा की गई है। द्विगुसमास की तत्पुरुष संज्ञा होने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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