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प्रथमाध्यायस्य चतुर्थः पादः
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व्यास और रावी इन तीन नदियों की घाटियों के कारण इसका नाम त्रिगर्त पड़ा।” (पा० का० भारतवर्ष पृ० ४१) ।
सिद्धि - (१) अप त्रिगतेभ्यो वृष्टो देवः । यहां 'अप' निपात शब्द की कर्मवचनीय संज्ञा होने से 'पञ्चम्यपापरिभि:' (२ | ३ |१०) से इसके योग में पञ्चमी विभक्ति होती है। इसी प्रकार -परि त्रिगर्तेभ्यो वृष्टो देवः ।
आङ्
(७) आङ् मर्यादावचने । ८६ ।
प०वि०- - आङ् १ ।१ मर्यादा - वचने ७ । १ ।
स०- मर्यादाया वचनमिति मर्यादावचनम्, तस्मिन्-मर्यादावचने ( षष्ठीतत्पुरुषः) ।
अन्वयः - मर्यादावचने आङ् निपातः कर्मप्रवचनीयः ।
अर्थ:-मर्यादावचनेऽर्थे आङ निपातः कर्मप्रवचनीयसंज्ञको भवति ।
उदा०-आ पाटलिपुत्राद् वृष्टो देवः । आ कुमारं यशः पाणिनेः । आ सांकाश्यात् वृष्टो देवः । आ मथुराया वृष्टो देवः ।
आर्यभाषा - अर्थ - (मर्यादावचने) अवधि के कथन में (आङ्) आङ् निपात की ( कर्मप्रवचनीयः ) कर्मप्रवचनीय संज्ञा होती है।
उदा०-आ पाटलिपुत्राद् वृष्टो देवः । पाटलिपुत्र तक इन्द्रदेव ने वर्षा की। आ कुमारं यशः पाणिनेः । पाणिनिमुनि का यश बालकों तक फैला हुआ है। आ सांकाश्यात् वृष्टो देवः। सांकाश्य तक इन्द्रदेव ने वर्षा की। आ मथुराया वृष्टो देवः । मथुरा तक इन्द्रदेव ने वर्षा की।
सिद्धि- (१) आ पाटलिपुत्राद् वृष्टो देव: । यहां आङ् निपात की कर्मप्रवचनीय संज्ञा होने से उसके योग में 'पञ्चम्यपाङ्परिभि:' ( २/३ 1१०) से पञ्चमी विभक्ति होती है।
(२) आ कुमारं यशः पाणिनेः । यहां 'आङ्' निपात का 'आङ् मर्यादाभिविध्योः ' (२।१।१३) से अव्ययीभाव समास भी होता है। आ+कुमार=आ कुमारम्।
विशेष - (१) पाटलिपुत्र । यह एक प्राचीन नगर है । यह मगध देश की राजधानी है। यह शोण और गंगा के संगम पर स्थित है। वर्तमान में इसे पटना कहते हैं। इसे पुष्पपुर और कुसुमनगर भी कहते हैं।
(२) सांकाश्य । यह जनक के भ्राता कुशध्वज की राजधानी का नाम है।
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