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________________ २७२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनु: (२) अनुर्लक्षणे।८।। प०वि०-अनु: ११ लक्षणे ७।१ । अन्वय:-लक्षणेऽनुर्निपात: कर्मप्रवचनीयः । अर्थ:-लक्षणे (हतौ) अर्थेऽनुर्निपाता कर्मप्रवचनीयसंज्ञको भवति । उदा०-शाकल्यस्य संहितामनु प्रावर्षत् । अगस्त्यमन्वसिञ्चन् प्रजाः । आर्यभाषा-अर्थ-(लक्षणे) हेतु अर्थ में (अनु.) अनु निपात की (कर्मप्रवचनीय:) कर्मप्रवचनीय संज्ञा होती है। . उदा०-शाकल्यस्य संहितामनु प्रावर्षत् । शाकल्य की संहिता के पाठ के कारण वर्षा हुई। अगस्त्यमनुन्वसिञ्चन् प्रजाः। अगस्त्य नक्षत्र को देखने के कारण प्रजा ने सिंचाई आरम्भ की कि अब वर्षा नहीं होगी।। सिद्धि-शाकल्यस्य संहितामनु प्रावर्षत् । यहां अनु निपात लक्षण हेतु अर्थ में है, अत: हतौं (२।३।२३) से तृतीया विभक्ति प्राप्त थी, किन्तु अनु की कर्मप्रवचनीय संज्ञा हो जाने से उसके योग में संहिता शब्द में कर्मप्रवचनीययुक्ते द्वितीया' (२।३।८) से द्वितीया विभक्ति होती है। इसी प्रकार-अगस्त्यमन्वसिञ्चन् प्रजाः । (३) तृतीयार्थे ।८५। प०वि०-तृतीया-अर्थे ७१। स०-तृतीयाया अर्थ इति तृतीयार्थ:, तस्मिन्-तृतीयार्थे (षष्ठीतत्पुरुष:)। अनु०-‘अनुः' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-तृतीयार्थेऽनुर्निपात: कर्मप्रवचनीयः । अर्थ:-तृतीयार्थेऽनुर्निपात: कर्मप्रवचनीयसंज्ञको भवति। उदा०-नदीमन्ववसिता सेना। पर्वतमन्ववसिता सेना, नद्या पर्वतेन वा सम्बद्धा इत्यर्थः। आर्यभाषा-अर्थ-(तृतीयार्थे) तृतीया विभक्ति के अर्थ में (अनुः) अनु निपात की (कर्मवचनीय:) कर्मवचनीय संज्ञा होती है। उदा०-नदीमन्ववसिता सेना । सेना नदी के साथ सम्बद्ध है। पर्वतमन्ववसिता सेना । सेना पर्वत के साथ सम्बद्ध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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