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प्रथमाध्यायस्य चतुर्थः पादः
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(१) दुहि - गोपालो गां दोग्धि पयः । (२) याचि - देवदत्तः पौरवं गां याचते । (३) रुधि - गोपालो गामवरुणद्धि व्रजम् । ( ४ ) प्रच्छि - पथिको माणवकं पन्थानं पृच्छति । (५) भिक्ष- यज्ञदत्त: पौरवं गां भिक्षते । (६) चिञ् - मालाकारो वृक्षमवचिनोति फलानि । (७) ब्रुवि - आचार्यो माणवकं धर्मं ब्रूते । (८) शासि - आचार्यो माणवकं धर्ममनुशास्ति ।
आर्यभाषा-अर्थ- अपादान आदि कारकों के द्वारा जो (अकथितम् ) न कहा गया कारक है उसकी (कर्म) कर्म संज्ञा होती है। उपरिलिखित कारिका में दुहि आदि आठ धातुओं की गणना की गई है। उसके अनुसार उदाहरण निम्नलिखित है
(१) दुहि - गोपालो गां दोग्धि पयः । गवाला गौ से दूध दुहता है । (२) याचि - देवदत्तः पौरवं गां याचते । देवदत्त पौरव राजा से एक गौ मांगता है । (३) रुधि-गोपालो गामवरुणद्धि व्रजम् । गोपाल गौ को बाड़े में रोकता है। (४) प्रच्छि-पथिको माणवकं पन्थानं पृच्छति । पथिक बालक से रास्ता पूछता है । (५) भिक्ष- यज्ञदत्तो पौरवं गां भिक्षते । यज्ञदत्त पौरव राजा से एक गौ की भिक्षा मांगता है। (६) चिञ्-मालाकारो वृक्षमवचिनोति फलानि । माली वृक्ष से फल चुनता है। (७) ब्रुवि- आचार्यो माणवकं धर्मं ब्रूते । आचार्य बालक धर्म बतलाता है । (८) शासि - आचार्यो माणवकं धर्ममनुशास्ति । आचार्य बालक को धर्म की शिक्षा देता है ।
सिद्धि - (१) गोपालो गां दोग्धि पयः । यहां दोग्धि क्रिया, गोपालः कर्ता और पयः कर्म है, किन्तु गौ अकथित कारक है, क्योंकि उसका अपादान आदि कारकों के द्वारा कथन नहीं किया गया। अतः उसकी इस सूत्र से कर्म संज्ञा का विधान किया गया है। इसलिये उसमें 'कर्मणि द्वितीया' (२।३।२) से द्वितीया विभक्ति हो जाती है। इसी प्रकार अन्य उदाहरणों में भी समझ लेवें ।
और
(२) इस विधि से 'दुहिं' आदि धातु द्विकर्मक कहलाती हैं। इन कर्मों में एक प्रधान दूसरा कर्म गौण कहलाता है। गोपालो गां दोग्धि पय: । यहां पय:' प्रधान कर्म है और 'गाम्' गौण कर्म है। उसे ही अकथित कर्म समझें । उपरिलिखित उदाहरणों में रेखांकित पद अकथित कर्म हैं।
अणौ कर्ता स णौ कर्म
(४) गतिबुद्धिप्रत्यवसानार्थशब्दकर्माकर्मकाणामणि कर्ता स णौ । ५२ ।
प०वि०-गति-बुद्धि-प्रत्यवसानार्थ- शब्दकर्म-अकर्मकाणाम् ६ । ३ अणि लुप्तसप्तमी ( ७ । १) कर्ता १ । १ सः १ ।१ णौ ७ । १ ।
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