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________________ २०५ प्रथमाध्यायस्य तृतीयः पादः (५) नर्तयते । यहां नृती गात्रविक्षेपे (दिवादि०) धातु से पूर्ववत् णिच्' प्रत्यय करने पर पुगन्तलघूपधस्य च' (७।३।८६) से नृत्' धातु की उपधा को गुण होता है। नृती गात्रविक्षेपे (नाचना) धातु के चलनार्थक होने से निगरणचलनार्थेभ्यश्च' (१।३।८७) से परस्मैपद प्राप्त था। इस सूत्र से आत्मनेपद का विधान किया है। (६) वादयते। यहां वद व्यक्तायां वाचि' (भ्वादि०) धातु से पूर्ववत् णिच्' प्रत्यय करने पर अत उपधाया:' (७।२।११६) से वद्' धातु की उपधा को वृद्धि होती है। इसी प्रकार 'वस निवासे' (भ्वादि०) धातु से वासयते' शब्द सिद्ध होता है। यहां (२-६) 'अणावकर्मकाच्चित्तवत्कर्तृकात्' (१।२।८८) से परस्मैपद प्राप्त था। इस सूत्र से आत्मनेपद का विधान किया है। क्यषन्तात् वा क्यषः।६०। प०वि०-वा अव्ययपदम् । क्यष: ५।१ । अन्वय:-क्यष: कतरि वा परस्मैपदम्। अर्थ:-क्यष्-प्रत्ययान्ताद् धातोर्विकल्पेन कर्तरि परस्मैपदं भवति । उदा०-(लोहित) लोहितायति । लोहितायते। (पटपटा) पटपटायति । पटपटायते। आर्यभाषा-अर्थ-(क्यष:) क्यष् प्रत्ययान्त धातु से (वा) विकल्प से (कतरि) कर्तृवाच्य में (परस्मैपदम्) परस्मैपद होता है।। उदा०-(लोहित) लोहितायति । लोहतायते। जो लोहित (लाल) नहीं है वह लोहित होता है। (पटपट) पटपटायति। पटपटायते। जो पटपट (ध्वनि) नहीं है, वह पटपट होता है। सिद्धि-(१) लोहितायते । लोहित+क्यण् । लोहित+य। लोहिताय+लट् । लोहिताय+शप्+तिप् । लोहिताय+अ+ति। लोहितायति। यहां लोहित शब्द से प्रथम लोहितादिडाज्भ्य: क्यष्' (३।१।१३) से 'क्यष्' प्रत्यय और तत्पश्चात् क्यषन्त लोहिताय' धातु से लट्' धातु और उसके स्थान में परस्मैपद तिप्' आदेश होता है। आत्मनेपद पक्ष में लट् के स्थान में आत्मनेपद त' आदेश होता है। (२) पटपटायति। पटत्+डाच् । पटत्+पटत्+आ। पट+पट+आ+पटपटा। पटपटा+क्यष् । पटपटा+य। पटपटाय+लट् । पटपटाय+शप्+तिप्। पटपटाय+अ+ति। पटपटायति। यहां प्रथम पटत् शब्द से 'अव्यक्तानुकरणाद् व्यजवरार्धादनितौ डाच् (५।४।५७) . से डाच्' प्रत्यय, 'अचि भवतः' (वा० ८।१।१२) से पटत् शब्द को द्वित्व, तस्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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