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________________ १७६ प्रथमाध्यायस्य तृतीयः पादः विशेष-प्रश्न-तृतीया विभक्ति, चतुर्थी विभक्ति के अर्थ में कैसे होती है ? उत्तर-अशिष्ट व्यवहार में तृतीया विभक्ति चतुर्थी विभक्ति के अर्थ में होती है। उपाद् यमः स्वकरणे।५६। प०वि०-उपात् ५।१ यम: ५।१ स्वकरणे ७।१। अन्वय:-स्वकरणे उपाद् यम: कर्तरि आत्मनेपदम्। अर्थ:-स्वकरणेऽर्थे वर्तमानाद् उप-उपसर्गपूर्वाद् यमो धातो: पर: कर्तरि आत्मनेपदं भवति। पाणिग्रहणरूपमिह स्वकरणं गृह्यते न स्वकरणमात्रम्। उदा०-भार्यामुपयच्छते देवदत्तः । आर्यभाषा-अर्थ-(स्वकरणे) अपना बनाने अर्थ में (उप:) उप-उपसर्ग से परे (यम:) यम धातु से (कीर) कर्तृवाच्य में (आत्मनेपदम्) आत्मनेपद होता है। यहां पाणिग्रहणरूप स्वकरण अर्थ का ग्रहण किया जाता है, केवल स्वकरणमात्र नहीं। उदा०-भार्यामुपयच्छते देवदत्तः । देवदत्त पत्नी को अपनाता है (विवाह करता है)। सिद्धि-उपयच्छते। उप+यम्+लट् । यप यच्छ्+शप्+त। उप+यच्छ+अ+ते। उपयच्छते। यहां 'इषुगमियमां छ:' (७।३।७७) से यम् के 'म्' को 'छ' आदेश होता है। (४५) ज्ञाश्रुस्मृदृशां सनः।५७। प०वि०-ज्ञा-श्रु-स्मृ-दृशाम्, पञ्चमी-अर्थे ६ ।३ सन: ५।१ । स०-ज्ञाश्च श्रुश्च स्मृश्च दृश् च ते-ज्ञाश्रुस्मृदश:, तेषाम्ज्ञाश्रुस्मृदशाम् (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। अन्वय:-सन: ज्ञाश्रुस्मृदृशां कर्तरि आत्मनेपदम्। अर्थ:-सन्नन्तेभ्यो ज्ञा-श्रु-स्मृ-दृश्भ्यो धातुभ्य: कर्तरि आत्मनेपदं भवति। उदा०-(ज्ञा) धर्म जिज्ञासते। ज्ञातुमिच्छतीत्यर्थः। (श्रु) गुरुं शुश्रूषते । श्रोतुमिच्छतीत्यर्थः । (स्मृ) नष्टं सुस्मूषत । स्मर्तुमिच्छतीत्यर्थः । (दृश्) राजानं दिदृक्षते। द्रष्टुमिच्छतीत्यर्थः । आर्यभाषा-अर्थ-(सन:) सन् प्रत्ययान्त (ज्ञा-श्रु-स्मृ-दशाम्) ज्ञा, श्रु, स्मृ और दृश् धातुओं से (कतार) कर्तृवाच्य में (आत्मनेपदम्) आत्मनेपद होता है। उदा०-(ज्ञा) धर्म जिज्ञासते। धर्म को जानना चाहता है। (श्रु) गुरुं शुश्रूषते। गुरु की शुश्रूषा सेवा करना चाहता है। (स्म) नष्टं सुस्मूर्षते। भूले हुये को याद करना चाहता है। (दृश्) राजानं दिदृक्षते। राजा को देखना चाहता है। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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