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________________ १४3 प्रथमाध्यायस्य तृतीयः पादः प्रत्ययस्यादिमौ चवर्गटवर्गौ (६) चुटू।७। प०वि०-चु-टू १।२। स०-चुश्च टुश्च तौ-चुटू (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-'उपदेशे, प्रत्ययस्य, आदि:, इत्' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-उपदेशे प्रत्ययस्यादिश्चुटू इत् । अर्थ:-पाणिनीय-उपदेशे प्रत्ययस्यादिमौ चवर्ग-टवर्गों इत्संज्ञको भवत:। उदा०-चवर्ग-(च) गोत्रे कुजादिभ्यश्च्फञ्' कौजायन्य: । (छ) छस्य स्थाने ईयादेशो भवति । (ज) जस्-ब्राह्मणा: । (झ्) झस्य स्थानेऽन्तादेशो भवति। (ञ्) 'शण्डिकादिभ्यो ज्य:' शाण्डिक्य: । टवर्ग:-(ट्) 'चरेष्ट:' कुरुचरी। मद्रचरी। (४) ठस्य स्थाने इकादेशो भवति । (ड्) 'सप्तम्यां जनेर्ड:' उपसरजः । मन्दुरजः । (द) ढस्य स्थाने एयादेशो भवति। (ण) 'अन्नाण्ण:' आन्नः। आर्यभाषा-अर्थ-(प्रत्ययस्य) प्रत्यय के (आदिः) आदि में विद्यमान (चु-टू) चवर्ग और टवर्ग की (इत्) इत् संज्ञा होती है। उदा०-चवर्ग (च) गोत्रे कुजादिभ्यशच्फा-कौजायन्य: । कुञ्ज के पौत्र। (छ) छु को ईय् आदेश हो जाता है। (ज) जस-ब्राह्मणाः । सब ब्राह्मण। (झ) को अन्त आदेश हो जाता है। (ज) शण्डिकादिभ्यो ज्य:-शाण्डिक्यः । शण्डिक का अभिजन। पूर्वजों का देश। टवर्ग (ट्) चरेष्ट:-कुरुचरी। कुरु देश में घूमनेवाली नारी। कुरु-दिल्ली के आस-पास का प्रदेश। मद्रचरी। मद्रदेश में घूमनेवाली नारी। (ठ) के स्थान में इक् आदेश होता है। (ड्) सप्तम्यां जनेर्ड:-उपसरजः। प्रथम बार गर्भ धारण करने पर उत्पन्न हुआ गाय का बछड़ा। मन्दुरजः। घुड़साल में पैदा होनेवाला। (द) द को एय् आदेश हो जाता है। (ण) अन्नाण्ण:-आन्न: । अन्न को प्राप्त करनेवाला। सिद्धि-(१) कौञ्जायन्य: । कुञ्ज+मञ् । कुञ्ज+फ। कुञ्ज+आयन । कोजायन+व्य। कौञ्जायन्+य। कौञ्जायन्य+सु। कोजायन्य: । यहां गोत्रे कुजादिभ्यश्च्क' (४।१।९८) से कुञ्ज शब्द से मार प्रत्यय करने पर इस सूत्र से प्रत्यय के '' की इत् संज्ञा होती है। मा प्रत्यय के पश्चात् प्रातजोररसिवान (५।३।११३) से स्वार्थ में ज्य प्रत्यय होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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