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________________ प्रथमाध्यायस्य द्वितीयः पादः १२७ सिद्धि-कुछ वैयाकरणों ने काल और उपसर्जन की परिभाषायें की हैं। जैसे-'आन्याय्यादुत्थानादान्याय्याच्च संवेशनात्, एषोऽद्यतन: काल:' अर्थात् उठने से लेकर सोने तक के काल को अद्यतन काल कहते हैं। 'अहरुभयतोऽर्धरात्रम् एषोऽद्यतन: काल:' अर्धरात्रि के दोनों ओर जो दिन है, उसे अद्यतन काल कहा जाता है। 'अप्रधानमुपसर्जनम् अप्रधान को उपसर्जन कहते हैं। इस विषय में पाणिनिमुनि का मत यह है कि काल और उपसर्जन के लक्षण-उपदेश की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह लोकप्रमाण से ही सिद्ध हो जाता है। जिन लोगों ने व्याकरण नहीं पढ़ा वे भी ऐसा कहते हैं कि इदमस्माभिरद्य कृतम्, इदं श्व: कर्त्तव्यम्, इदं ह्यः कृतम्' इत्यादि। इसी प्रकार उपसर्जनं वयमत्र गृहे प्रामे वा' ऐसा कहने पर लोक में यह समझा जाता है कि हम इस घर में अथवा ग्राम में अप्रधान हैं। अत: जो अर्थ लोक से सिद्ध है, उसमें शास्त्र के द्वारा प्रयत्न करने की क्या आवश्यकता है? वचनप्रकरणम् एकवचने बहुवचनविकल्पः(१) जात्याख्यायामेकस्मिन् बहुवचनमन्यतरस्याम्।५८। प०वि०-जाति-आख्यायाम् ७ १ एकस्मिन् ७।१ बहुवचनम् ११ अन्यतरस्याम् अव्ययम्। स०-जातेराख्या इति जात्याख्या, तस्याम्-जात्याख्यायाम् (षष्ठीतत्पुरुषः)। अन्वय:-जात्याख्यायामेकस्मिन् अन्यतरस्यां बहुवचनम्। अर्थ:-जाति-आख्यामेकस्मिन्नर्थे विकल्पेन बहुवचनं भवति । उदा०-(एकवचनम्) सम्पन्नो यव:। सम्पन्नो व्रीहिः । पूर्ववया ब्राह्मणो प्रत्युत्थेयः। (बहुवचनम्) सम्पन्ना यवाः । सम्पन्ना व्रीहयः । पूर्ववयसो ब्राह्मणा: प्रत्युत्थेयाः। ___आर्यभाषा-अर्थ-(जाति-आख्यायाम्) जाति का कथन करते समय (एकस्मिन्) एकवचन में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (बहुवचन) बहुवचन होता है। उदा०-(एकवचन) सम्पन्नो यवः। (बहुवचन) सम्पन्ना यवाः । समृद्ध जौ। (एकवचन) सम्पन्नो व्रीहिः । (बहुवचन) सम्पन्ना वीहयः । समृद्ध चावल। (एकवचन) पूर्ववया ब्राह्मणः प्रत्युत्थेय: । (बहुवचन) पूर्वयवसो ब्राह्मणा प्रत्युत्थेया: । पूर्वज ब्राह्मण का प्रत्युत्थानपूर्वक आदर करना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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