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________________ १०८ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अन्वय:-यज्ञकर्मणि उदात्तानुदात्तस्वरितानामेकश्रुति, अजपन्यूलसामसु। अर्थ:-यज्ञकर्मणि, उदात्तानुदात्तस्वरितानामेकश्रुतिस्वरो भवति, जपन्यूडसामानि वर्जयित्वा । यथा(१) ओ३म् अग्निर्मूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम् । अपां रेताँसि जिन्वतो३म् । यजु० ३।१२। (२) ओ३म् समिधाग्नि दुवस्यत घृतैर्बोधयतातिथिम् । ___ आस्मिन् हव्या जुहातन । यजु० ३।१। आर्यभाषा-अर्थ- (यज्ञकर्माण) यज्ञ-कर्म में उदात्त, अनुदात्त और स्वरित स्वरों का (एकश्रुति) एकश्रुति स्वर होता है (अजपन्यूज-साम्यसु) जप, न्यङ्ख और सामवेद को छोड़कर। जैसे(१) ओ३म् अग्निद्र्धा दिव: ककुत्पतिः पृथिव्या अयम् । ___अपां रेताँसि जिन्वतो३म् । यजु० ३।१२। (२) ओ३म् समिधाग्नि दुवस्यत घृतैर्बोधयतातिथिम्। आस्मिन् हव्या जुहातन। यजु० ३।१। विशेष-(प्रश्न) जप किसे कहते हैं। उत्तर-अनुकरण मन्त्र को 'जप' कहते हैं। इसका ओठों से ही धीरे-धीरे उच्चारण किया जाता है। यह पास में बैठे हुये व्यक्ति को भी सुनाई नहीं देता है। (प्रश्न) न्यूखे किसे कहते हैं। .. (उत्तर) (१) बारह ओकारों को न्यूख कहते हैं। उनमें कुछ उदात्त हैं और कुछ अनुदात्त हैं। किन्तु उनका यज्ञकर्म में एकश्रुति स्वर नहीं होता है। (२) न्यूखास्तु पृष्ठये षडहे होतृवेदे प्रसिद्धा ओकारा द्वादश-पिबा सोममिन्द्र मन्दतु त्वां यं तो ओ ओ ओ३ ओ ओ ओ ओ३ ओ ओ ओ३ सुषाव हर्यश्वादिः कात्यायनश्रौतसूत्रभाष्ये (१ ।१९४) कर्कः।। (३) आश्वलायनश्रौतसूत्र (७ ।११) में पढ़े हुये निगद विशेष को न्यू ल कहते हैं। (प्रश्न) साम किसे कहते हैं। (उत्तर) (१) वाक्य विशेष में स्थित गीत को साम कहते हैं। जैसे-ए३ विश्वं समत्रिणं दह३ । साम में एकश्रुति स्वर नहीं होता है। (२) सामवेद के गान को साम कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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