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________________ १०४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् विशेष-(१) आयामो दारुण्यमणुता खस्येत्युच्चैःकराणि शब्दस्य। आयामो गात्राणां निग्रहः । दारुण्यं स्वरस्य, दारुणता रूक्षता। अणुता खस्य, कण्ठस्य संवृतता। उच्चैःकराणि शब्दस्य (व्याकरणमहाभाष्यम् १।२।२९) __ अर्थ:-शरीर के अवयवों का निग्रह करना, स्वर की रूक्षता और कण्ठ की संवृतता ये शब्द के उच्चैःकरण के हेतु हैं। (२) ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद में उदात्त स्वर पर कोई चिह्न नहीं होता है। सामवेद में उदात्त स्वर एक अड्क (2) का चिह्न दिया जाता है। (३) यहां वर्ण की ध्वनिकृत उच्चता नहीं, अपितु स्थानकृत उच्चता है। जिस वर्ण का जो स्थान है और वहां जो उच्चता है, उस स्थान से उच्चारण किये गये स्वर षड्ज आदि स्वरों के समान अभ्यास से ही उपलब्ध होता है। अनुदात्तसंज्ञा (२) नीचैरनुदात्तः ।३०। प०वि०-नीचैः अव्ययपदम्, अनुदात्त: १।१। अनु०-'अच्' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-नीचैरज् अनुदात्तः । अर्थ:-कण्ठादीनां स्थानानां नीचैर्भागे निष्पन्नोऽच्, अनुदात्तसंज्ञको भवति । त्व। सम। सिम। आर्यभाषा-अर्थ-(नीचैः) कण्ठ आदि स्थानों के (नीचैः) नीचे भाग से उत्पन्न होनेवाले (अच्) स्वर की (अनुदात्तः) अनुदात्त संज्ञा होती है। त्वम् । कोई। सम। सब। सिम। सब। सिद्धि-(१) त्व। यह सर्वातनि सर्वनामानि (१।१।२७) सर्वादिगण में अनुदात्त पढ़ा गया है। इसी प्रकार वहां सम' और 'सिम' शब्द भी अनुदात्त पढ़े गये हैं। विशेष-(१) अन्वसर्गो मार्दवमुरुता खस्येति नीचैःकराणि शब्दस्य । अन्वसर्गो गात्राणां शिथिलता। मार्दवं स्वरस्य मृदुता-स्निग्धता। उरुता खस्य, महत्ता कण्ठस्य नीचैः कराणि शब्दस्य (व्याकरणमहाभाष्यम् १।२।३०) अर्थ-शरीर के अवयवों की शिथिलता, स्वर की कोमलता और कण्ठ की महत्ता ये शब्द के नीचैःकरण के हेतु हैं। (२) ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद में अनुदात्त स्वर पर ऐसा चिह्न (-) लगता है। सामवेद में अनुदात्त का चिह्न (३क) स्वर के ऊपर लिखा जाता है। (३) यहां वर्ण का ध्वनिकृत नीचत्व नहीं है, अपितु स्थानकृत नीचत्व है। जिस वर्ण का जो स्थान है और वहां जो नीचा भाग है, उस स्थान से उच्चारण किये गये स्वर को अनुदात्त कहते हैं। यह स्वर षड्ज आदि स्वरों के समान अभ्यास से ही उपलब्ध होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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