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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा-अर्थ-(उत्-उपधात्) उकार उपधावाली धातु से (सेट) इट् आगमवाला (निष्ठा) क्त प्रत्यय (भाव-आदिकर्मणोः) भाववाच्य और आदिकर्म अर्थ में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (कित्) कित् (न) नहीं होता है।
उदा०-(धुत्) भाव-द्युतितम् अनेन । द्योतितम् अनेन। इसके द्वारा चमका गया। आदिकर्म-प्रद्युतित: । प्रद्योतित: । उसने चमकना प्रारम्भ किया। (मुद्) भाव-मुदितम् अनेन। मोदितम् अनेन। आदिकर्म-प्रमुदितः । प्रमोदितः । उसने प्रसन्न होना प्रारम्भ किया।
सिद्धि-(१) द्युतितम् । द्युत्+क्त । द्युत्+इट्+त। द्युत्+इ+त । द्युतित+सु । द्युतितम् ।
यहां 'द्युत् दीप्तौ' (भ्वा०आ०) धातु के नपुंसके भावे क्त:' (३।३।११४) से भाव अर्थ में 'क्त' प्रत्यय और पूर्ववत् 'इट' का आगम होने पर एक पक्ष में 'क्त' प्रत्यय को कित् मानने से 'पुगन्तलघूपधस्य च (७।३।८६) से प्राप्त गुण का विडति च (१ ।१।५) से निषेध हो जाता है।
(२) द्योतितम् । यहां विकल्प पक्ष में क्त' प्रत्यय को 'कित्' न मानने से 'द्युत्' धातु को 'पुगन्तलघूपधस्य च' (७।३।८६) से लघूपध गुण हो जाता है।
(३) 'मुद हर्षे (भ्वादि०) धातु से मुदितम् आदि शब्द सिद्ध करें।
(४) 'धात्वर्थो भाव:' धातु के अर्थ मात्र को कहना 'भाव' कहलाता है। आदिकर्म शब्द का अर्थ क्रिया का प्रारम्भ करना है।
(५) क्तवत्तवतू निष्ठा' (१।१।२६) सूत्र से क्त' और क्तवतु' प्रत्यय की निष्ठा संज्ञा की गई है। भाव और आदिकर्म में क्तवतु' प्रत्यय नहीं होता। इसलिये यहां 'क्त' प्रत्यय के उदाहरण दिये गये हैं।
(६) यहां 'अन्यतरस्याम् एक व्यवस्थित विभाषा है। इसलिये 'शप' विकरण की उकार-उपधावाली धातुओं से परे ही भाव और आदिकर्म अर्थ में सेट् 'क्त' प्रत्यय विकल्प से कित् होता है। अन्य विकरण की उकार उपधावाली धातुओं से परे भाव और आदिकर्म अर्थ में सेट् 'क्त' प्रत्यय विकल्प से कित् नहीं होता है। जैसे-गुध परिवेष्टने (दिवादि०) गुधितमनेन इत्यादि। निष्ठाक्त्वाकित्त्वप्रतिषेधः
(१८) पूङः क्त्वा च ।२२। प०वि०-पूङ: ५।१ क्त्वा ११ च अव्ययपदम्।
अनु०-सेट निष्ठा कित् न' इत्यनुवर्तते। अत्र 'अन्यतरस्याम्' इति नानुवर्तते, अग्रिमे सूत्रे 'वा' इति वचनात्।
अन्वय:-पूङ: सेट् निष्ठा क्त्वा च किद् न ।
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