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________________ ६० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् वनतितनोत्यादीनामनुनासिकलोपो झलि विडति (६।४।३७) से गम् धातु के अनुनासिक का लोप हो जाता है। विकल्प पक्ष में जहां लिङ्' प्रत्यय कित् नहीं होता है, वहां अनुनासिक का लोप नहीं होता है-संगसीष्ट। (२) समगत । सम्+गम्+लुङ् । सम्+अट्+गम्+च्लि+ल् । सम्+अ+गम्+स्+त । सम्+अ+गं+स्+त। सम्+अ+ग+o+त। समगत। यहां 'सम्' उपसर्गपूर्वक 'गम्लु गतौ (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् लुङ्' प्रत्यय, चिल' और 'सिच्’ आदेश करने पर सिच्' के कित् होने से पूर्ववत् अनुदोत्तोपदेश' (६।४।३७) से 'गम्' धातु के अनुनासिक का लोप हो जाता है। विकल्प पक्ष में जहां सिच्' प्रत्यय कित् नहीं होता वहां अनुनासिक का लोप नहीं होता है-समगस्त। विशेष-'गम्ल गतौ' (भ्वा०प०) धातु परस्मैपद है किन्तु समो गम्यूच्छिभ्याम् (१।३।२९) से सम्' उपसर्गपूर्वक 'गम्' धातु से आत्मनेपद का विधान किया गया है। सिच् प्रत्ययः (१०) हनः सिच् ।१४। । प०वि०-हन: ५ १ सिच् ११ अनु०-'आत्मनेपदेषु कित्' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-हन: सिच् आत्मनेपदेषु कित्। अर्थ:-हनो. धातो: पर: सिच् प्रत्यय आत्मनेपदेषु किद्वद् भवति । उदा०-(सिच्) आहत । आहसाताम् । आहसत। आर्यभाषा-अर्थ-(हन:) हन् धातु से परे (आत्मनेपदेषु) आत्मनेपदविषयक (सिच्) सिच् प्रत्यय (कित्) किद्वत् होता है। उदा०-(सिच्) आहत। उसने धक्का दिया। आहसाताम्। उन दोनों ने धक्का दिया। आहसत। उन सबने धक्का दिया। सिद्धि-(१) आहत । आङ्+हन्+लुङ् । आ+अट् हन्+च्लि+ल। आ+हन्+सिच्+त। आ+हन्+स्+त। आ+हं+स्+त। आ+ह+o+त। आहत। यहां हन् हिंसागत्योः' (अदा०प०) धातु से पूर्ववत् लुङ्' प्रत्यय, 'फिल' और सिच्' आदेश करने पर सिच्' प्रत्यय के कित्' होने से हन् धातु के अनुनासिक का 'अनुदात्तोपदेश०' (६।४।३७) से लोप हो जाता है। विशेष-'हन् हिंसागत्योः (अदा०प०) धातु परस्मैपदी है, किन्तु 'आङो यमहनः' (१।३।२८) से आङ्पूर्वक 'हन्' धातु से आत्मनेपद का विधान किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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