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________________ ८० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अपित् सार्वधातुकम् (४) सार्वधातुकमपित्।४। प०वि०-सार्वधातुकम् ११ अपित् ११। स०-प इत् यस्य स:-पित् । न पित् इति अपित् (बहुव्रीहिगर्भितनञ्तत्पुरुषः)। अनु०-'ङित्' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-अपित् सार्वधातुकं ङित्। अर्थ:-पिद्भिन्न: सार्वधातुकप्रत्ययो डिद्वद्भवति । उदा०-कुरुत:। कुर्वन्ति । चिनुत: । चिन्वन्ति। आर्यभाषा-अर्थ-(अपित्) पित् से भिन्न (सार्वधातुकम्) सार्वधातुक प्रत्यय (डित्) डिद्वद् होते हैं। उदा०-कुरुतः। वे दोनों करते हैं। कुर्वन्ति वे सब करते हैं। चिनुत: । वे दोनों चुनते हैं। चिन्वन्ति । वे सब चुनते हैं। सिद्धि-(१) कुरुतः । कृ+लट् । कृ+तस् । क् उ +उ+तस् । कुरुतः । यहां डुकृञ् करणे (तना०3०) धातु से वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से लट्' प्रत्यय, तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से ल' के स्थान में तस्' आदेश, तनादिकृभ्यः उ' (३।११७९) से उ' विकरण प्रत्यय, 'सार्वधातुकार्धधातुकयोः' (७।३।८४) से कृ' अङ्ग को गुण, 'अत उत् सर्वधातुके (६।४।१००) से अङ्ग के 'अ' को उकार आदेश होता है। तस्' प्रत्यय सार्वधातुक है, उसके परे होने पर भी 'सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३।८४) से अङ्ग उ' को गुण प्राप्त होता है, किन्तु इस सूत्र से अपित् तस्' प्रत्यय के डित् होने से क्डिति च' (१।१५) से गुण का निषेध हो जाता है। विशेष-तिशित् सार्वधातुकम्' (३।४।१३३) से तिङ् और शित् प्रत्ययों की सार्वधातुक संज्ञा की गई है। इस सूत्र से उन सार्वधातुक प्रत्ययों में पित् को छोड़कर शेष प्रत्यय 'डित्' हो जाते हैं। तिङ् प्रत्यय निम्नलिखित हैं-तिप, तस्, झि, सिप, थस् थ, मिप्, वस् मस्, त, आताम् झ, थास्, आथाम्, ध्वम्, इट्, वहि, महिङ्। कित्-प्रकरणम् अपित् लिट् प्रत्ययः (१) असंयोगाल्लिट् कित्।५। प०वि०-असंयोगात् ५।१। लिट् ११ कित् १।१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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