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________________ भूमिका ५ पं० युधिष्ठिर मीमांसक लिखते हैं- “हम प्राचीन वाङ्मय के अनुशीलन से इस परिणाम परे पहुंचे हैं कि पाणिनि विक्रम से २८०० वर्ष प्राचीन है" ( पृ० १३६) । पाणिनि की अष्टाध्यायी नाम महाभाष्य में पाणिनि की अष्टाध्यायी के तीन नाम मिलते हैं- (१) अष्टकअष्टावध्याया: परिमाणमस्य सूत्रस्येति - अष्टकम् ( ४ । १।५८) । ( २ ) पाणिनीयपाणिनिना प्रोक्तं पाणिनीयम् ( ४ | ३ | १०१) । (३) वृत्तिसूत्र - न ब्रूमो वृत्तिसूत्रप्रामाण्यादिति किं तर्हि ? वार्तिकवचनप्रामाण्यादिति (२ ।१ ।१) । पाणिनि मुनि की अनुपम रचना 'अष्टाध्यायी' के नाम से ही लोक में प्रसिद्ध हैअष्टानामध्यायानां समाहारः-अष्टाध्यायी । इसमें आठ अध्याय हैं इसलिए इसे अष्टाध्यायी कहते हैं। पाणिनि मुनि ने अष्टाध्यायी के प्रारम्भ में 'अथ शब्दानुशासनम्' में अपने शास्त्र का नाम 'शब्दानुशासन' लिखा है । ग्रन्थ- परिमाण 1 गुरु-शिष्य परम्परा से अष्टाध्यायी के मूल पाठ को लोगों ने कण्ठस्थ रखा है आज भी वेदपाठी श्रोत्रिय लोग छः वेदांगों में अष्टाध्यायी को कण्ठस्थ करते हैं । स्वरसिद्धान्तचन्द्रिका के अनुसार अष्टाध्यायी की सूत्र संख्या ३९९५ है जिसमें १४ प्रत्याहार सूत्र भी सम्मिलित हैं । चतुः सहस्री सूत्राणां पञ्चसूत्रविवर्जिता । अष्टाध्यायी पाणिनीया सूत्रैमहिश्वरैः सह । । अष्टाध्यायी का एक सहस्र श्लोक परिमाण माना जाता है उसका अभिप्राय यह है कि अष्टाध्यायी के अक्षरों की गणना करके अनुष्टुप् छन्द के ३२ अक्षरों से उनका भाग दिया जाता है । इस प्रकार से अष्टाध्यायी ग्रन्थ का एक सहस्र श्लोक परिमाण बनता है । यह ग्रन्थ- परिमाण की प्राचीन पद्धति है । ( स्व०च० श्लोक १५ ) कात्यायन की श्रद्धा कात्यायन मुनि पाणिनीय अष्टाध्यायी के सब से योग्य, प्रतिभाशाली व्याख्याता हुए हैं। उन्होंने पाणिनि के सूत्रों पर वार्तिक रचकर उनकी तुलनात्मक शैली से समीक्षा की है । कात्यायन की बहुमुखी समीक्षा से पाणिनीय अष्टाध्यायी लोक में तप गई। कात्यायन पाणिनि के प्रतिद्वन्द्वी नहीं थे अपितु उन्होंने पाणिनि के प्रति अत्यन्त श्रद्धावान् होकर अपना अन्तिम वार्तिक भक्तिभरे शब्दों में समाप्त किया है- “भगवत: पाणिनेः सिद्धम् " (८।६।६८ ) यहां कात्यायन ने पाणिनि को 'भगवान्' शब्द से स्मरण किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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