SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 182 ] सातवां अध्याय उत्तर का जैन साहित्य जनों ने सदा सर्वदा साहित्य के क्षेत्र में प्रसन्न प्रवृत्ति का विकास किया है। "यह साहित्य अत्यन्त ही विस्तृत और रस से अोतप्रोत है। भारतीय और यूरोपीय ग्रन्थालय जैन हस्तप्रतियों के ऐसे भारी संग्रह से भरे हैं । जिनका अभी तक भी कोई उपयोग नहीं किया गया है। जैन ग्रन्थकार अधिकांश साधूवर्ग के ही हैं। ये साधू चौमासे के चार महीने ग्रन्थ लेखन में उपयोग करते थे जब कि उनका भ्रमण करना धर्म से निषिद्ध है और इसलिए उन्हें एक स्थान में स्थिर निवास करना होता है। ग्रन्थ-रचयितामों में साधुनों के ही अधिकांशत: होने के कारण साहित्य में भी उनकी वृत्ति की छाया विषय और प्राशय दोनों में ही स्पष्ट मालूम होती है। प्रमुख बातों में वह साहित्य धार्मिक लक्षण वाला है और इस विषय में वह बौद्ध एवं ब्राह्मणीय साहित्य से मिलता हुआ है । ईश्वरवादी और दार्शनिक ग्रन्थ, सन्तों की कथाएं, धार्मिक पुस्तिकाएं, और तीर्थंकरों की स्तुति के स्त्रोत इस साहित्य के प्रमुख अंग हैं । विज्ञान, नाटक, काव्य, चम्पू और शिलालेख प्रादि सांसारिक विषयों के इनके ग्रन्थों में भी धार्मिक वातावरण ही गूजता है। जैन इतिहास के जिस काल का हम यहां विचार कर रहे हैं, उसका सम्बन्ध साहित्य लिखे जाने के पूर्व काल से ही है । देवर्धिगरिण एक दीपस्तम्भ के समान खड़े हैं और वे उस काल का अन्त कि जिसमें सिद्धान्त कहा जाने वाला जैनों का आगमिक साहित्य ही प्रमुखतया है, अंकित करते हैं। फिर भी जनों के समस्त साहित्य की प्रस्तावना रूप से यहां यह कह देना उचित है कि इस अपार साहित्य में भी चचित विषय अत्यन्त विविधता के है। “सर्व प्रथम तो सिद्धान्त और उस पर लिखी गई टीकात्रों का समूह है। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिक साहित्य भी अनेक प्रकार का है। सिद्धान्त, न्याय और दर्शन की विशिष्ट पद्धति का विकास जैनों ने किया है। फिर उनने ब्राह्मणीय विद्वानों का भी बड़ी सफलता से विकास किया है। संस्कृत और प्राकृत दोनों ही के व्याकरण और कोश की उनने रचना की है । यही क्यों, गुजराती को भी कुछ कोश और व्याकरण उनके रचित मिलते हैं और फारसी का एक कोश भी। काव्य, अलंकार, छन्द और नीति की दोनों शाखाएं याने राजनीति एवम् सामान्य नीति के भी अनेक जैन ग्रन्थ हैं। नीति ग्रन्थों में जीवन के कुशल निर्वाह के नियम दिए गए हैं। राजकुमारों की शिक्षा के लिए जैनों ने गजशास्त्र, शालिहोत्र, युद्ध-रथों, और धनुष शास्त्र एवम् कामशास्त्र पर भी ग्रन्थ लिखे हैं । राजकुमारों से अतिरिक्त जनता के उपयोग के लिए उनने मंत्र-तन्त्र और ज्योतिष, चमत्कार याने जादू, शकुनअपशकुन और स्वप्नविचार पर ग्रन्थ लिखे हैं कि जिनका भारतीय जीवन में सदा ही महत्वपूर्ण भाग रहा है । उनके रचित वस्तुशास्त्र, संगीत, राग और वाद्य, सुवर्ण, रत्न आदि पर भी ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं... । संक्षेप में बहुव्यापक लोकप्रिय साहित्य के रचियता जैन हैं।" 1. हर्टल, पान दी लिटरेचर आफ दी श्वेताम्बराज आफ गुजरात, पृ. 4। 2. हर्टल, वही, पृ. 5-6 । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy