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हुआ कलश या और दूसरी घोर ये शब्द: "श्री महाराजा हरिगुप्त "" उसमें दिए नाम की तुलना से सिक्का विज्ञानवेत्ताओं का मानना है ही पाया गया होगा । फिर भी इस हरिगुप्त का गुप्तवंश के किसी सकता है । प्राचीन लिपिशास्त्र के अनुसार ऐसा लगता है कि इस के मध्य में होना चाहिए।" इस प्रकार तिथि और स्थान जहां कि पर का वर्णन जैन हरिगुप्त के साथ ठीक बैठ जाता है । सिक्का पंजाब के किमी जिले से मिला है और 'हरिगुप्त' तोरमाण का समकालिक होने से वह भी विक्रम की छठी सदी के मध्य का होना चाहिए। इस प्रकार तिथि, स्थान, नाम और वंश इन सब बातों की समानता को दृष्टि में लेते हुए इस सिक्के का और जैनों का हरिगुप्त एक ही व्यक्ति माना जाए तो उसमें कोई भी भूल नहीं है ।
उसके अक्षरों के आकार और घाट से और कि यह सिक्का गुप्तवंश के किसी राजा द्वारा राजा के साथ सम्बन्ध बैठाया नहीं जा सिक्के में वर्णित हरिगुप्त विक्रम की छठी सदी यह सिक्का पाया गया था, और इस सिक्के
ब्याही गई थी, का
अब देवगुप्त का विचार करें। इसके विषय में भी वैसी ही कठिनाइयां हैं फिर भी बाग के हर्षचरित से जो कि ऐतिहासिक रोमांच कथा का सर्व प्रथम प्रयास कहा जाता है, हमें पता लगता है कि थागेश्वर और कन्नौज के महाराजा के ही काल में मालवा के सिंहासन पर एक राजा था जिसे हर्षवर्धन के बड़े भाई राज्यवर्धन ने हराया था क्योंकि मालवा राज कान्यकुब्ज के राजा ग्रहवर्मन कि जिसे हर्षवर्धन को भगिनि वेरी घोषित कर दिया गया था।" मालवा के इस राजा को डा. कूलर ने मधुबन शिलालेख को ही देवगुप्त ही माना है । " अब प्रश्न उठता है कि क्या जैन दन्तकथा का देवगुप्त हर्षचरित में जिसे मालवा का राजा बताया गया है, वहीं है। इस विषय में कठिनाई केवल दोनों देवगुप्तों के समय के समन्वय की है। तोरमाण की अनेक तिथियों में से सब ने बाद की तिथि ई. लगभग 516 की है। यदि इसे मान लिया जाए तो 75 वर्ष का रहनेवाला अन्तर केवल इसी कल्पना पर ठीक बैठाया जा सकता है कि तोरमाण की मृत्यु ई. 516 के कुछ ही बाद हुई होगी हरिगुप्ताचार्य अपने इस कृपालुराजा की मृत्यु के बाद भी बहुत 1. देखो एलन, कंटेलोग ग्राफ इण्डियन काइन्स गुप्ता डाइनेस्टीज, पृ. ग्राफ मैडीवल इण्डिया, पू. 19 प्लेट 2 7 चत्र 6 जिनविजयजी ठीक ही कहते हैं, जैनों का एक लोकप्रिय प्रतीक है । देखो जिनविजयजी, वही, 184 । 2. देखो कनियम, वही. पृ. 18-19 प्रहर 'ह' का ग्राकार गुप्तों का विशेष प्रकार का है।' वही, पृ. 19
लगभग
152 और प्लेट 26, 16 कनियम, काइन्स यहां यह भी कह देना चाहिए कि कला, जैसा कि
3. उनकी लिपि के अनुसार हरिगुप्त के सिक्के 5वीं सदी के मालूम होते हैं। एलन, वही, पृ.
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4. कोयल और टामस हर्षचरित 5. देखो वही, प्रस्ता. पृ. 11-12 प्रख्यात राज्यवर्धन जिसके द्वारा, युद्ध में अपना दण्ड चलाते देवगुप्त आदि राजा जो दुष्ट अश्वों के समान थे, म्लान मुख हो, वश हो गए कूलर, एपी. इष्टि.. पुस्त. 1, पृ. 741 देखो वाट वही, पृ. 52 मुकर्जी राधाकुमुद, हर्ष, पृ. 16-19, 53
6. मारण के वर्णन की सत्यता को स्वीकार करते हुए... यह कहा जा सकता है कि देवगुप्त मालवा के राजा का नाम था वही प्रमुख रिपु था और उसके राज्य की विजय वारा के इस वन से भी समर्थित होती है कि मण्डिन जो राज्यवर्धन के साथ गया था, मालवा की लूट हर्षवर्धन के पास उस समय लाया कि जब हर्ष कुमार भास्करवर्मन के राज्य में राजा गौड़ से प्रतिशोध लेने के अभियान में पहुंचा था मैं यहां कह दूं कि मालव शब्द न तो यहां और न श्री हर्षचरित में अन्य उल्लेखों में ही मध्यभारत के मालव के लिए प्रयुक्त हुआ है । पंजाब में भी एक दूसरा मालव, थानेश्वर के निकटतम था और कदाचित् वही यहां प्रभिप्रेत है । बहूलर, वही, पु. 70 देखो मुकर्जी, राधाकुमुद, वही, पृ. 25, 50 आादि ।
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प्रस्तावना, पु. 8 ।
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