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की तिथि ई. पूर्व 1,6-15 होना चाहिए डा. क्रोनोव ने शोडास के मिलालेख में विक्रम संवत् उल्लिखित किए जाने के वास्तविक काररण दिखाए हैं । ' उसका कहना है कि 'मुझे लगता है कि उस समय तक चार महीनों की एक ऋतु और तीन ऋतुनों के अनुसार तिथि देने की पद्धति ही बाद में विक्रम संवत् का खास लक्षरण माना जाने लगा था। प्राचीनतम शिलालेखों से जिनमें कि इस संवत् का उल्लेख है. सूचित होता है कि वह मालव सम्वत् कहा गया है। इस सम्बद के प्रयोग के दो प्राचीनतम उदाहरण याने नरवर्मन काल के मन्दसोर के और दूसरे कुमारगुप्त 1म काल की वहीं के लेख में ऋतुए स्पष्ट रूप से दी गई हैं। इस प्रकार मैं मानता हूं कि शोडास ने अपने शिलालेख में विक्रम संवत का ही व्यवहार किया है और यही सम्बत् कनिष्क और उसके वंशजों ने समस्त भारत वर्ष की अपनी तिथियों के लिए स्वीकार किया है क्योंकि प्रजाकीय गणना के लिए उत्तर भारत में वही सम्वत् व्यवहृत होता था । 2
इन दो क्षत्रप शिलालेखों के बाद वैसे नीचे वर्गित किया गया है और जो बहूलर के का एक उल्लेख योग्य है :
'अर्हतु वर्धमान को नमस्कारः शकों और पाथेयों को काले नाग के समान गोतिपुत्र ( गुप्तिपुत्र) की कौशिक गोत्र की पत्नि शिवमित्रा ने पूजा की एक शिला कराई थी । *
शिलालेखों का समूह प्राता है जिन्हें 'श्रापे' (Archaie) शीर्षक के अनुसार कनिष्क के पूर्व के युग या काल के हैं । इन में से नीचे
डा. कूलर के अनुसार गोतिपुत्र और कौशिक और शकों को एक काले नाग के समान वाक्य उसके है कि 'इससे जिन युद्धों का निर्देश होता है वे या तो अथवा उनकी सत्ता हट जाने के बाद के भी हो सकते हैं और सम्भवतया ई. पूर्व 1ली सदी के हो सकते हैं. सिथियन विजय से पहले का लिखा हुआ हो तो यह जैन मन्दिर की करता है जहां कि लेख उपलब्ध हुआ था ।"
शिवमय दोनों ही राजकुल के थे और 'गोतीपुत्र, पायेयों वीर जाति के होने की सूचना देते हैं। वह विद्वान कहता कनिष्क के पूर्व सिथियनों ने मथुरा जीता उसके पूर्व के हीं
हैं
। लेख के प्रक्षर जो कि विशेष रूप से पुरानी परिपाटी के पहले विकल्प का पक्ष ही समर्थन करते हैं। यदि शिलालेख प्राचीनता का मूल्यवान प्रमाण भी प्रस्तुत
तिथियां दी हैं और जो कनिष्क, हुविष्क जिन्हें भी उन्हीं के समय का कहा जाता
इनके बाद कालक्रमानुसारी लेखों का वह समूह प्राता है कि जिनमें और वासुदेव का उल्लेख करते हैं। इनके अतिरिक्त भी तिथि वाले लेख है है हालांकि उनमें उस कुपाए राजों में से किसी के नाम का उल्लेख नहीं हुआ है ।' सं. 11 से 24 के लेखों का समूह', डा. बहूलर कहता है कि, भी तिथि वाले लेखों का है कि जो मेरी राय में कनिष्क, हृविष्क, और वासुदेव
है। फिर भी मेरा विश्वास है कि
के काल के ही हैं। परन्तु उनमें से एक में भी राजा का नाम नहीं दिया हुआ जो कोई इन राजों के नाम वाले तिथ्यांकित लेखों से सावधनी के साथ इन्हें पर नहीं आएगा 18
मिलाएगा, वह किसी ग्रन्य निष्कर्ष
ये तिथीवाले कुपारा लेख सम्बत् 4 से सम्बद 98 की ज्ञात सीमा के हैं। यह सम्वत् विक्रम या अभ्य कोई यह ठीक ठीक कहना सम्भव नहीं है। "इस युग की काल गणना भारतीय इतिहास की प्रत्यधिक उसकी हुई समस्या रही है और अब भी इसका कोई हल निकल ग्राया हो ऐसा नही कहा जा सकता है । कहने का
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1. देखो कोनोव एपी. इण्डि पुस्त. 14 . 139-141
3. स्कूलर, वही, पुस्त. 2. लेख सं. 4-10, पृ. 1961
5. वही, पृ. 3941 6. saz, qft. for.. gen. 196 1
,
2. देखो कोनोव, वही पु. 139 141
4. वही, लेख, सं. 23, पृ. 396 I 7. देखो वही
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कनिषम वही पु. 141
,
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