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________________ 134] प्रकार उत्कोसित है कि पार्श्वनाथ के लांछन सर्प के तीन फस जैसी वह दीखती है।" स्वर्गपुरी गुफा में तीन शिलालेख हैं जिसमें का पहला कलिंग सम्राट खारवेल की पटरानी का है । इस पर से मालूम होता है कि जैन सम्प्रदाय की सेवा करने के सुकार्य में वह अपनी पटरानी को भी साथ रखता था। उदार और धार्मिक वृत्ति की इस स्त्री, जो कि लालाक की पुत्री थी, की स्मृति उसकी निर्मित गुफा और जैन मन्दिर का उल्लेख करने वाले छोटे शिलालेख वाली गुफा के साथ जुड़ी हुई है जिसका कि हम आगे विचार करने वाले हैं । बंगाल जिला विवरणिका के पुरी खण्ड में मुद्रित नक्शे के अनुसार डॉ. बैनरजी इसे मंचपुरी गुहा कहते हैं परन्तु कुछ समय पहले यह स्वर्गपुर कहा जाता था । " प्रिन्स्प प्रिन्स्येय ने इसे वैकुण्ठ गुंफा, और मित्रा 4 ने बैकुण्ठपुर कहा था। इसके भिन्न-भिन्न नामों के विषय में श्री नरजी कहते हैं कि "इन गुफाओं के स्थानीय नाम प्रत्येक पीढ़ी में बदलते रहे हैं। जब एक नाम विस्मृत हो जाता है तो दूसरा तुरन्त घड़ लिया जाता है । वस्तुतः यह गुफा दो मंजिली और पार्श्व पक्षवाली गुफा की ही उपरी मंजिल है, परन्तु स्थानिक लोग बहुधा भागों को भी पृथक नाम दे देते हैं। 5 प्रथम लेख सामने के दूसरे और तीसरे द्वार के बीच के उपसे हुए स्थान पर खुदा हुआ और तीन पंक्तियों का है और वह कहता है कि 'कलिंग के श्रमणों के लिए एक गुफा और एक अर्हतों का मन्दिर हस्तिसाहस (हस्तिसाह) के पौत्र लालाक की पुत्री, खारवेल की पटरानी ने बनाया है ।' 6 7 8 दूसरा और तीसरा उल्लेख दो गुफाओं सम्बन्धी ही है जिसमें की एक गुफा 'कलिंग का नियंता राजा कूडे सीरी और दूसरी युवराज बहुल" इस प्रकार के दो नामों की है। सामने की भींत पर पहली और नीचे की मन्जिल की बाजू की भींत पर दूसरी लेख खुदी हुयी है । बेनरजी के अनुसार इन तीनों शिलालेखों की लिपि' खारवेल के हाथीगुफा के शिलालेख के थोड़े ही समय बाद की है।" ये सब साधन कलिंग पर प्रभावशाली जैन राजवंश की हस्ति को प्रमाणित करते हैं। यह वंश कब तक चलता रहा था और उसके बाद कौनसा वंश याया इसकी जानकारी नहीं है परन्तु जिला विवरणिका कहती है कि उड़ीमा घोर कलिंग ई. दूसरी सदी में प्रधवंश की प्रधीनता में था जिसके कि राज्यकाल में वहां बुद्धधर्म का प्रवेश होना कहा जा सकता है । तिब्बती वृत्तान्तों में एक कथा सुरक्षित है और वह यह है कि ग्रांध्र दरबार में ई. 200 में होने वाले नागार्जुन ने श्रोटिशाके राजा को श्रपने 1000 प्रजाजनों सहित बुद्धधर्म में दीक्षित किया था । प्रजाजनों का यह धर्म परिवर्तन राजा के उदाहरण से सहल बन गया होगा ऐना लगता है । 10 - इन ऐतिहासिक प्रमाणों के हमारे सामने होते हुए सम्राज्ञी के पिता के सगे-सम्बन्धी भी जैन हों, यह अनुमान करना जरा भी प्रतिशयोक्तिक नहीं है। हम ग्रागे देखेंगे कि उनका भी एक ऐसा महान् राजवंश होना चाहिए कि जिसके साथ खारवेल जैसे महान सम्राट ने अपना वैवाहिक सम्बन्ध जोड़ना उचित समझा था । 1. अँडिग पुरी. पु. 260 2. g. sfos., gea. 13, q. 159 | " 3. एसो पत्रिका, सं. 6, पृ. 10741 4. मित्रा एंटीस्विटीज ग्राफ उड़ीसा, भाग 2, 7 5. एपी. इण्डि., पुस्त. 13, वही और वही स्थान । 6. परत पमादाय कालियानं समनानं लेणं... सिरि खारवेलस प्रयमहिसिना कारितम् । वही । 7. एपी. इण्डि., 13 पृ. 16 1 8. वही, पृ. 161 1 Jain Education International 14-15 I 9. वही, पृ. 159 1 10. fang, 251 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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