________________
विजय' के पास जा कर जैन दीक्षा ले ली । " ही राजा नन्द की सेवा में था । उ
3
[113
अन्त में मंत्रीपद उनके छोटे भाई धीयक को दिया कि जो पहले
जैनों और नन्दों का पारस्परिक सम्बन्ध इस प्रकार है । नन्दों के समय में जैन प्रभावशाली थे यह बात संस्कृत नाटक 'मुद्राराक्षस" से भी स्पष्ट होती है कि जिसने चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण का प्रसंग नाटक रूप में चित्रित किया गया है। इसमें कहा गया है कि उस काल में जैनी प्रधानपद भोग रहे थे ।" और चाणक्य "कांति का मुख्य प्रणेता भी मुख्य दूत स्वरूप में एक जैन को ही रखना है।""
नन्दों की राजसत्ता पर शैशुनाग वंश का सा प्रकाश जैन ग्रन्थों में कुछ भी नहीं मिलता है । बिलकुल स्पष्ट रूप में वे यही सूचित करते हैं कि जैन अमात्य कल्पक की सहायता से राजा नन्द ने अनेक राजों को वश कर लिया था और जैसा कि आगे कहा जाएगा, अन्तिम नन्द को चारणक्य के शरण में जाना पड़ा था कि जिसने उसके दरबार में हुए अपने अपमान के कारण उसकी सत्ता नाश करने और उसे पदभ्रष्ट करने की प्रतिज्ञा कर ली थी । फिर भी यह स्मरण रखना चाहिए कि नन्दवंश की राजसत्ता के विषय में यह स्पष्टता केवल जैन इतिवृत्तों में ही नहीं है। जैसा कि डॉ. शापेंटियर कहते हैं, "प्राचीन भारतीय इतिहास के अनेक अंधकारमय युगों में से यह नन्दों का राज्य एक प्रति अन्धकार का काल है ।""
यह
नन्दों के बाद मौर्य पाते हैं। इन नन्दों का स्थान मोपों ने कैसे और क्यों लिया वह कुछ भी स्पष्ट प्रतीत नहीं होता है। फिर भी इतना तो निश्चित है कि भारतीय इतिहास के इसी परिवर्तन काल में "कदाचित जगत का नहीं तो कम से कम भारत का तो अवश्य ही प्रथम अर्थशास्त्री" चारणक्य प्रकाश में आता है ।" विस्मय की बात ही है कि इस राजवंश क्रांति का ब्यौरेवार विवरण उपलब्ध नहीं है, फिर भी प्राचीन साहित्यिक वनों से यह मालूम होता है कि अन्तिम नन्द "उसके प्रजाजनों द्वारा तिरस्कृत और अपदार्थ माना जाता था ।" फिर इन वनों में दरात नन्दों की विशाल स्थायी सेना एवम् उनका प्रतुल धन स्वभावतः सूचित करता है कि उस समय इनकी ओर से बहुत कुछ प्रार्थिक निष्कर्षरण चल रहा होगा । इतना होने पर नन्दों की जैन ऐसी
कोई शिकायत नहीं करते हैं।
1. शकटालमन्त्रिपुत्रः श्री स्थूलभद्रो... पितरि मृते नन्दराजेनाकार्य मन्त्रमुद्रादानायाम्यथितः सन् पितृमृत्यु स्वचित्रेत विचिन्त्य दीक्षामादत्त । कल्पसूत्र, सुबोधिका टीका, पृ. 162 । देखो श्रावश्यकसूत्र, पृ. 435-436, 693-695 हेमचन्द्र वही, श्लो. 3-82 स्मिथ ने भ्रम से उसे 'नवे नन्द का मन्त्री' लिख दिया है । स्मिथ, अर्ली हिस्ट्री ग्राफ इण्डिया, पृ. 49, टि. 2 1
2. प्रथम प्रधान सुधर्मा भगवान् के निर्वाण के 20 वर्ष बाद निर्माण हुए थे उनने जम्बू को युगप्रधानत्व । दिया था जो कि इस पद पर 44 वर्ष रहे थे और नन्दों के राज्यासीन होने के समय के लगभग ही निर्वाण प्राप्त हुए । उनके बाद तीन युगप्रधानों की पीढ़ियां हुई और अन्तिम नन्द के समय जनसंघ में दो युगप्रधान थे सम्मूतविजय धौर भद्रबाहु ..." शापेंटियर, वही, पृ. 164 याकोबी, सेबुई पुस्त. 22, पृ. 287 3... भीयकः स्थापितः, आवश्यकसूत्र, पृ. 436 हेमचन्द्र वहीं
1
10 83.84
"
1
4. देखी नरसिंहाचार, एपी. कर्ना., पुस्त. 2 प्रस्ता. पृ. 41 राइस इन माइसोर एण्ड कुर्ग, पृ. 8; स्मिथ, आक्सफर्ड हिन्दी ग्राफ इण्डिया, पृ. 75
5. शपेंटियर, वही और वही स्थान । 6. सम्मदार, दी ग्लोरीज ग्राफ मगध पू. 2
7. महाग में अन्तिम नन्द की जब धन नाम द्वारा निंदा की गई है, तो यह मालूम होता है कि प्रथम नन्द के प्रति प्रति लोभ का दोष मंदा जा रहा है; और चीनी पर्यटक ह्य ुएनत्सांग भी नन्द राज को अतुल धन का प्रख्यात स्वामी कह कर उल्लेख करता है।" स्मिथ घर्ती हिस्ट्री ग्रॉफ इण्डिया पु. 42 देखो रायचौधरी, वही, पृ. 143 1
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org