________________
104 ]
एकदम असत्य आधार पर नहीं है। इसमें अविश्वास अथवा आश्चर्य की कोई भी बात नहीं है कि महावीर के ही सगे सम्बन्धियों ने त्रस्त मानवों के समक्ष प्रस्तुत किए हए उनके महान् सन्देह में सजीव रूचि दिखाई हो। महावीर और उनके राजा अनुयायियों के इस निकट सम्बन्ध की बात को छोड़ दे तो भी श्रेणिक सम्बन्धी जनों की साहित्यिक और काल्पनिक दन्तकथाएं इतनी विभिन्न और इतनी अमिलिखित हैं कि वे महान् प्राश्रयदाता राजों के असीम सम्मान की दूरी पूरी साक्षी देती हैं कि जिन की ऐतिहासिकता, यह सौभाग्य की ही बात है कि, शंका से दूर है।
अब हम कूरिगक का विचार करें। यहां हम देखते हैं कि उसके पिता धेणिक जितने वे इसके विषय में वाग्मी नहीं है हालांकि उसके जीवन से सम्बन्धित प्रायःसभी घटनाओं पर प्रकाश डालने वाला प्रचुर माहित्य हमें उपलब्ध है। इस बात को बाजू रख देने पर भी उसकी जीवनी की जो वात अत्यधिक स्पष्ट है वह है इस महान सम्राट का बौद्धों और जैनों दोनों के प्रति ही रूख । यह प्रसंग मगध के सिंहासन से संबंधित है । बौद्ध यह निश्चित रूप से कहते हैं कि जब बिबिसार को उसका पुत्र अजातशत्रु खंजर द्वारा मारनेवाला ही था, उसने शासन का भार उसे सौप दिया यद्यपि राज्याधिकारियों ने उसे याने श्रेणिक को बचा लिया था फिर भी अजातशत्रु ने उसे भूखा रख कर मार ही दिया और उसकी मृत्यु को पश्चात् अपनी इस पाप का प्रायश्चित उसने बुद्ध के सामने पश्चात्ताप कर किया।'' पक्षान्तर में जैन इसी घटना का वर्णन एकदम दूसरी ही प्रकार करते हैं । उनके अनुसार बौद्धों के पितृघाती अजातशत्रु न अपने पिता को यद्यपि बन्दी अवश्य ही कर लिया था और उसे कारावास में दुःख भी दिया था, फिर भी श्रेणिक का निधन ऐसी परिस्थितियों में हुआ कहा गया है कि जो पिता और पुत्र दोनों के ही प्रति घृणा को अपेक्षा हमारी समवेदना व सहानुभूति ही जगाती है, पिता के प्रति उसकी असामयिक मृत्यु के शरण और पुत्र के प्रति उसके शुभसंकल्प को पिता द्वारा गलत समझ लिए जाने के कारण ।
1. देखो अावश्यकसूत्र, पृ. 679; अनुत्तरोववाइयदसाम्रो, सूत्र 1, 2, पृ. 1-2; वारन्यैट, वही, पृ. 110-112;
रायचौधरी, वही, पृ. वही; प्रधान, वही, पृ. 2131 2. सेरिणयमज्जाग...सिद्धा । अंतगडदसायो, सुत्र 16-26, पृ. 25-32। देखो वारन्यैट, वही, पृ. 97-107;
अावश्यकसूत्र, पृ. 687; हेमचन्द्र, वही, श्लो. 406, पृ. 171 । श्रेणिक के पुत्रों में से हल्ल, विहल्ल, अभय, नंदिषेण, मेघकुमार आदि ने महावीर के साधूसंघ के साधू हो गए थे, देखो अनुत्तरो बवाइयदसायो, मूत्र 1,
पृ. । । वही, सूत्र 2, पृ. 2; वारन्यैट, वही, पृ. 110-112; अावश्यकसूत्र, पृ. 682, 685। 3. श्रेणिक के महावीर प्रति भक्ति के लिए देखो सेरिणय राया, चेल्लगा देवी ।।...परिसा निग्गया, धम्मो कहियो।
भगवती. मत्र 4. 6. प. 6. 10; मेहस्स कमारस्स अम्मापियरो...समणं भगवं महावीरं...वंदंति नमंसति एवं वदासी...अम्हे णं देवाणप्पियाण सिस्सभिक्खं दलयामो । ज्ञातसूत्र, सूत्र 25, पृ. 60 । देखो कल्पसूत्र, बोधिका-टीका, पृ. 20 । (श्रेणिक;) राजा भणति अहं युष्मासु नाथेषु कथं नरक गमिष्यामि ?.अावश्यकसूत्र, पृ. 681 । इस प्रकार के और भी अनेक संदर्भ श्रेणिक सम्बन्धी जैन आगमों में से संकलित किए जा सकते हैं. परन्तु हमारे लिए इतना कहना ही पर्याप्त होगा कि जैन श्रेणिक का अनागत चौवीसी के प्रथम तीर्थ कर के रूप में
बहुत पूजते हैं। श्रेरिणकराइजीव पद्मनामो जिनेश्वरः । हेमचन्द्र, वही, श्लोक 189 । देखो टानी, वही, पृ.1781 4. जनों का पहला उपांग, प्रौपपातिक सूत्र सारा का सारा प्रजातशत्रु सम्बन्धी ही है। इसके सिवा इसके संदर्भ
भगवती, उवामगदाओ, ,अंतगडदयारो और अन्य अनेक स्थानों में मिलते हैं । कूणिक पर जनों ने पूरे विस्तार - के साथ लिखा है। 5. प्रधान, वही, पृ. 214 | देखो राकहिल, वही, पृ. 95 आदि; ह्रिस डेविड्स डायलोग्स प्राफ दी बुद्धा, भाग 1,
पृ. 94; रायचौधरी, वही, पृ 126-127; श्रीमती ह्रिस डेविडस, वही, पृ. 109-110।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org