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________________ [ 103 हम देख ही प्राए हैं कि बिंबसार का विवाह वर्धमान के मामा चेटक की पुत्री चेल्लपा से हुमा था । अपनी साध्वी हई कुछ भगिनियों और अपनी मुना, तीर्थकर की माता, त्रिशला के सम्बन्ध के कारण चेल्लणा बिंबसार के परिवार में सर्वाधिक महावीर से प्रभावित हुई थी। उसका यह झुकाव तब और भी दृष्टव्य हो जाता है जब हम जानते है कि बिंबसार के उत्तराधिकारी अजातशत्रु के माता के रूप में, वह मगधपति की पटरानी या अग्रमहिपी भी होना चाहिए । यही कारण है कि दिव्यावदान में एक स्थान पर अजातशतु को वेदेहीपुत्र और दूसरे स्थान पर 'राजगृह में राजा बिंबसार राज्य करता है' लिखा पाते हैं । वेदेही उसकी महादेवी याने पटरानी है और अजातशतु उसका पुत्र और राजकुमार ।" फिर चेल्लणा को सामान्यत: बौद्धग्रन्थों में 'वेदेही' कहा गया है और उसके कारण ही प्रजातशतु बहुधा वेदेहीपुत्तो अथवा विदेही राजकुमारी का पुत्र कहा गया है। इतने पर भी 'कुछ टीकाग्रन्थ-उदाहरणार्थ थूस और तच्छशूकर जातकों में कहा गया है कि अजातशतु की माता कोमल के राजा की भगिनी थी। परन्तु यहां टीकाकार बिंवसार की दो रानियों के बीच कुछ भ्रम में पड़ गए दीखते हैं। जैनों की इस मान्यता में सन्देह करने का कोई भी कारण नहीं है कि कूणिक चेल्लणा के अनेक पुत्रों में से एक और ज्येष्ठ पुत्र था और वह भी, महावीर की भांति ही, वेदेहीपुत्तो उचित ही कहा जाता था ।' चेल्लणा और कोसलदेवी के सिवा भी बिबसार के अनेक और रानिया थी इसका जैन एवं बौद्ध दोनों ही अाधारों से समर्थन होता है ।" तदनुसार कुरिणक, हल्ल. विहल्ल इन तीन चेल्लगा के पुत्रों के अतिरिक्त भी उसके अनेक पुत्र थे जिन सबके नाम दोनों ही इतिवृत्तों में मिलते हैं चाहे वे नाम प्रापप में मिलते हुए हों या नहीं यह बात दूसरी है। श्रेरिणके के इन पुत्रों और रानियों के विषय में जैनों का कहना है कि अधिकांश ने महावीर भगवान् से दीक्षा ले ली थी और सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गए थे । जैनों का यह दावा, कुछ अपवादों को छोड़, I. एकदा च प्रवृत्त शिशिर भयंकरः ।...तदा...।। देव्या चेल्लण्या सार्चन् ...नृपः । वीर'...। वन्दितमान्यणात् ।। हमचन्द्र, त्रिषष्टि-शलाका, पर्व 10, श्लो. 6, 10, 11, पृ. 86 । एकदा जब कि 'देश में मंयकर शीत पड़ रहा था राजा चेल्लरणा सहित महावीर को वंदन करने गया। टानीयवाही पृ. 175। इस विषय से अविक संदर्भो के लिए देखो वही, पृ. 239 | 2. राजगृहे राजा बिबिसारो...तस्य वैदेही महादेवी अजातशत्रुः पुत्रः, कोव्येल और नील, दिव्यावदानष पृ. 5451 देखो वही, पृ. 55; लाहा, बि. च , वही, पृ. 107 । 3. लाहा, बि.च., वही. प. 106। संयुत्तनिकाय, भाग 2, पृ; 268; रायचौधरी, वही, पृ. 124; हिस डेविड्स, कहिइ, भाग 1, पृ. 1831 4. लाहा, बि. च., वही, प. वही । देखो फासबूल, जातक, भाग 3, पृ. 121, और भा. 4, पृ. 342; रायचौधरी, वही और वही स्थान: ह्रिस डेविडस, वही, पृ. 183; श्रीमती हिम डेविड्स. दी बुक ग्राफ दी किण्डूयड सेइंग्ज भाग I, पृ. 109, टिप्पण । ! 5. कोरिणक:...चेल्लणाया उदरे उत्पन्न; आवश्यकसूत्र, पृ. 678...विदेहपुत्ते जइत्था। भगवती, सूत्र 300, पृ. 315; विदेहपुत्तेति कोणिक,...वही, सूत्र 301, पृ. 317 । देखो ह्रिस डेविड्स, बुद्धीस्ट इण्डिया, पृ. 3; प्रधान वही, पृ. 212 । 6. देखो भगवतीसत्र, सत्र 6, पृ. 11 । अनगडदसापा, सूत्र 16, 17, प. 25%; वारन्यट, वही, प. 97 7. देखो अावश्यकसूत्र, पृ. 679; रायचौधरी, वही, पृ. 126 | "बिबिसार ने अनेक राज्यों के राजों से विवाह मम्बन्ध जोड़ कर संधिया कर ली थीं । ऐसा करना प्राचीन भारतवर्ष में एक सामान्य बात थी, यह निश्चय ही कहा जा सकता है।' बेरणीप्रसाद, दी स्टेट इन एशेट इण्डिया, पृ. 163 । www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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