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________________ 90 ] है, उसे डा. हरनोली और डा. वान्यंटा' जिस जित का यह ने उचित ही महावीर का मामा चेघग या चेटक बताया है क्योंकि जितशत्रु का वाणियगाम, जैसा कि ग्रागे देखेंगे, वैशाली का ही दूसरा नाम था अथवा इस नाम मे प्रसिद्ध उनका कोई भाग था, डा. हरनोली के शब्दों में कहें तो 'सूर्यप्रज्ञप्ति में जिला को विदेह की राजधानी मिथिलाका राजा कहा है... यहां उसको वारिगाम प्रवासासी का राजा कहा है। फिर महावीर के मामा बेडग को नाली और विदेह का राजा होना भी कहा गया है।... इससे लगता है कि जिस और डग एक ही व्यक्ति हैं।" फिर राजा कुग्गिय जिसके साथ जितशत्रु की तुलना की गई है. अन्य कोई नहीं अपितु मगध के राजा बिसार का पुत्र और ग्रनुगामी गतशतु हो है । जब हम यह जानते हैं कि कुणिय उसके पिता जैसा महान् जैन था तो यह तुलना बिलकुल हो उचित लगती है। यह परिस्थिति उसके जीवन्त पर्यटकी रही थी या नहीं यह तो पीछे विचार करेंगे, परन्तु इतना तो निश्चित कहा जा सकता है कि उसको जैनधर्म के प्रति विशेष सहानुभूति थी" और वह महावीर के संसर्ग में एक से अधिक बार प्राया था । हमने पहले ही देख लिया है कि इस कुणिय या कुणिक का उसके नाना चेटक के साथ उस हाथी को ले कर युद्ध हुआ था जिसको ले कर उसका छोटा भाई वैसाली पलायन कर गया था। इससे ऐसा लगता है कि अजातशतु की प्रतिद्वन्द्वता में चेटक जितशत्रु कहलाया होगा। एक बार फिर डा. हरनोली का प्रमाण देते हैं कि मगध का राम प्रजातशत्रु एक समय महावीर का अनुयायी था और बाद में वह बुद्ध का अनुयायी बन गया होगा जैसा कि सूचित किया गया है जिस (जितन) नाम अजातशत्रु के प्रतिइन्द्री की दृष्टि से उसे दे दिया गया होगा। जैनों में अजातशत्रु कुरणीय नाम मे ही परिचित है और इसी नाम में यहां और अन्यत्र भी जितशत्रु से उसकी तुलना की गई है ।' इन सब दन्तकथात्रों पर से लिच्छवी क्षत्रियों के विषय में ऐसा लगता है कि वे भी विदेह की जैसे ही जैन थे 15 यदि यह स्वीकार कर लिया जाए तो महान् और शक्तिशाली लिच्छवी वंश महावीर के संस्कारित धर्म के लिए वास्तव में ही शक्ति का मूल्यवान श्रोत सिद्ध हो जाता है। उनकी राजधानी ही महावीर काल में जैन समाज की प्रमुख नगरी थी। जैन साहित्य से भी हम जानते हैं कि महावीर लिच्छवियों की राजनगरी ने प्रत्यन्त निकट संपर्क में थे । जैनों के इस अन्तिम तीर्थंकर को वैशाली अपना ही नागरिक घोषित करती है । सूत्रकृतांग में महावीर के विषय में कहा है कि " पूज्य प्रर्हत् ज्ञातृपुत्र, वैशाली के प्रसिद्ध निवामी, सर्वज्ञ, सम्यग्ज्ञान और दर्शन युक्त इस प्रकार बोले।" जैनसून उत्तराध्ययन में भी यही बात कुछ हेरफेर के साथ मिल जाती है ।" महावीर वेसालिए अथवा वैशालिक या वैशाली निवासी कहलाते हैं । फिर अभयदेवसूरि भगवती टीका में (21-12, 2) वंशालिक को महावीर ही बताते हैं और वैशाली को महावीर की जननी या माता कहते हैं " 1. वारन्ट, वही, प्रस्ता. पु. 6 नियम सम्बन्धी जैनों के 8 और 9 वे भांग के संदर्भों के लिए देखो, वही, पृ. 62, 113 1 2. हरनोली, वही, पृ. 6 टि. 9 1 3. तएां से कुणियं राया...समणं भगवं महावीरं... वंदतिगमनति... पपातिकसूत्र 32, पृ. 7 4. हरनोली वही धौर वही स्थान 1 5. जैनधर्म की वैशाली में प्रधानता के अधिक तथ्यों के लिए देखो लाहा, वि. प., वही पु. 72-75 याकोबी वही, पृ. 194 6. arstát, àgé., gear. 45, q. 261 1 देखो 8. लाहा. बि. च. वही. प. 31-321 राष्ययन सूत्र अध्ययन 6 गाया 17; याकोबी, वही. पू. 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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