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समयस्य सांशत्वं विशिष्टगतिपरिणामाद्विशिष्टावगाहपरिणामवत् । तथाहि-हे - यथा विशिष्टावगाहपरिणामादेकपरमाणुपरिमाणोऽनन्तपरमाणुस्कन्धः परमाणोरनंशत्खात् पुनरप्यनन्तांशलं न साधयति तथा विशिष्टगतिपरिणामादेककालाणुव्यासैकाकाशप्रदेशातिक्रमणपरिमाणावच्छिनैकसमयेनैकस्माल्लोकान्ताद्वितीयं लोकान्तमाक्रामतः परमाणोरसंख्येयाः कालाणवः समयस्यानंशत्वादसंख्येयांशत्वं न साधयन्ति ॥ ४७ ॥
अथाकाशस्य प्रदेशलक्षणं सूत्रयति
प्रवचनसारः
प्रति । इति प्रथमगाथा व्याख्यानम् । वविबददो तं देसं स परमाणुस्तमाकाशप्रदेशं यदा व्यतिपतितोऽतिक्रान्तो भवति तस्सम समओ तेन पुद्गलपरमाणुमन्दगतिगमनेन समः समानः समयो भवतीति निरंशत्वमिति वर्तमानसमयो व्याख्यातः । इदानीं पूर्वपरसमयौ कथयति - तदो परो पुच्चो तस्मात्पूर्वोक्तवर्तमानसमयात्परो भावी कोऽपि समयो भविष्यति पूर्वमपि कोऽपि गतः अत्थो जो एवं यः समयत्रयरूपोऽर्थः सो कालो सोऽतीतानागतवर्तमानरूपेण त्रिविधव्यवहारकालो भण्यते । समओ उप्पण्णपद्धंसी तेषु त्रिषु मध्ये योऽसौ वर्तमानः स उत्पन्नप्रध्वंसी अतीतानागतौ तु संख्ये या संख्येयानन्तसमयावित्यर्थः । एवमुक्तलक्षणे काले विद्यमानेऽपि परमात्मतत्त्वमलभमानोऽतीतानन्तकाले संसारसागरे भ्रमितोऽयं जीवो यतस्ततः कारणात्तदेव निजपरमात्मतत्त्वं सर्वप्रकारोपादेयरूपेण श्रद्धेयं, स्वसंवेदनज्ञानरूपेण ज्ञातव्यमाहारभयमैथुनपरिग्रहसंज्ञास्वरूपप्रभृति समस्तरागादिविभावत्यागेन ध्येयमिति तात्पर्यम् ॥ ४७ ॥ एवं कालव्याख्यानमुख्यत्वेन षष्ठस्थले गाथाद्वयं गतम् । अथ पूर्वं यत्सूचितं प्रदेशस्वरूपं तदिदानीं विवृणोतिक्षेत्र है, उसमें अंशोंकी कल्पना किस तरह हो सकती है ? कदापि नहीं हो सकती । उसी तरह समय भी सूक्ष्म काल है, इसमें अंश कल्पना नहीं हो सकती । यहाँपर कोई प्रश्न करे, कि पुद्गल - परमाणु एक समयमें शीघ्र गतिसे जाकर लोकके अग्रभागतक पहुँचता है, उस अवस्थामें चौदह राजूतक श्रेणीबद्ध जितने आकाश-प्रदेशों में कालाणु हैं, उन सबको स्पर्श करता है, इसलिये एकसमयमें गमन करनेसे जितने आकाश-प्रदेशों में कालाणु हैं, उतने ही समयके अंश भेद होने चाहिये ? इसका उत्तर यह है, कि परमाणुमें कोई एक गतिपरिणामकी विशेषता है, इस कारण बहुत शीघ्र चालसे १४ राजू चला जाता है, परंतु समयके अंश नहीं होते है, समय तो अत्यंत सूक्ष्म काल है । जैसे एक परमाणुके प्रमाण आकाश-प्रदेश है, उसमें अनंत परमाणुओका स्कंध रहता है, वहाँपर प्रदेशके अनंत अंश नहीं होते, क्योंकि परमाणु निरंश है, उसमें दूसरा अंश सिद्ध नहीं होता । इस कारण उस आकाशके प्रदेशमें कोई एक ऐसी अवगाह-शक्ति है, जो उसमें एक परमाणुके बराबर अनंत परमाणु स्कंध (समूह) रहते हैं, लेकिन अनंत परमाणुओंसे उस प्रदेशके अनंत अंश नहीं हो जाते, यह कोई अवगाह - शक्तिकी ही विशेषता है । उसी तरह गतिपरिणामकी विशेषतासे एक समय में परमाणु लोकके अंततक चला जाता है, वहाँ असंख्यात कालाणुओंको उल्लंघन करनेपर भी समयके असंख्यात अंश सिद्ध नहीं होते । समय तो अंशरूप ही है, उससे दूसरे अंश किस तरह हो सकते हैं? कदापि भी नहीं ॥ ४७ ॥ आगे आकाशके प्रदेशका लक्षण कहते हैं - [ अणु
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