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________________ १७८ कुन्दकुन्दविरचितः [ अ० २, गा० ४७ यो हि येन प्रदेशमात्रेण कालपदार्थेनाकाशस्य प्रदेशोऽभिव्याप्तस्तं प्रदेश मन्दगत्यातिक्रमतः परमाणोस्तत्प्रदेशमात्रातिक्रमणपरिमाणेन तेन समो यः कालपदार्थसूक्ष्मवृत्तिरूपसमयः स तस्य कालपदार्थस्य पर्यायस्ततः एवंविधात्पर्यायात्पूर्वोत्तरवृत्तिवृत्तत्वेन व्यञ्जितनित्यलो योऽर्थः तत्तु द्रव्यम् । एवमनुत्पन्नाविध्वस्तो द्रव्यसमयः, उत्पन्नमध्वंसी पर्यायसमयः । अनंशः समयोऽयमाकाशप्रदेशस्यानंशत्वान्यथानुपपत्तेः । न चैकसमयेन परमाणोरालोकान्तगमनेऽपि समः समानः सदृशस्तत्समः समओ कालाणुद्रव्यस्य सूक्ष्मपर्यायभूतः समयो व्यवहारकालो भवतीति पर्यायव्याख्यानं गतम् । तदो परो पुच्वो तस्मात्पूर्वोक्तसमयरूपकालपर्यायात्परो भाविकाले पूर्वमतीतकाले च जो अत्थो यः पूर्वपर्यायेष्वन्वयरूपेण दत्तपदार्थो द्रव्यं सो कालो स कालः कालपदार्थों भवतीति द्रव्यव्याख्यानम् | समओ उप्पण्णपद्धंसी स पूर्वोक्तसमयपर्यायो यद्यपि पूर्वापरसमयसंतानापेक्षया संख्येयासंख्येयानन्तसमयो भवति, तथापि वर्तमानसमयं प्रत्युत्पन्नप्रध्वंसी । यस्तु पूर्वोक्तद्रव्यकालः स त्रिकालस्थायित्वेन नित्य इति । एवं कालस्य पर्यायस्वरूपं द्रव्यस्वरूपं च ज्ञातव्यम् ॥ अथवानेन गाथाद्वयेन समयरूपव्यवहारकालव्याख्यानं क्रियते निश्चयकालव्याख्यानं तु 'उप्पादो पद्धसो' इत्यादि गाथात्रयेणाग्रे करोति । तद्यथा । समओ परमार्थकालस्य पर्यायभूतसमयः । अवप्पदेसो अपगतप्रदेशो द्वितीयादिप्रदेशरहितो निरंश इत्यर्थः । कथं निरंश इति चेत् । पदेसमेत्तस्स दवियजादस्स प्रदेशमात्रपुद्गलद्रव्यस्य संबन्धी योऽसौ परमाणुः वदिवादादो वट्टदि व्यतिपातात् मन्दगतिगमनात्सकाशात्स परमाणुस्तावद्गमनरूपेण वर्तते । कं प्रति । पदेसमागासदवियस्स विवक्षितैकाकाशप्रदेशं जितना कुछ सूक्ष्मकाल लगे, उस समान कालपदार्थ [ समयः ] समयनामा पर्याय कहा जाता है । [ततः ] उस पर्यायसे [ परः पूर्वः ] आगे तथा पहले [यः ] जो नित्यभूत [ अर्थः] पदार्थ है, [स] वह [कालः ] कालनामा द्रव्य है । भावार्थ - एक आकाशके प्रदेशमें जो कालाणु है, वह दूसरे प्रदेशमें रहनेवाले कालाणुसे कदापि नहीं मिलता, इस कारण जब पुद्गल - परमाणु एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश ( जगह ) में जाता है, तब पहले प्रदेशमें रहनेवाले कालाणुसे दूसरे प्रदेशवर्ति कालाणुमें भेद है, संयोग नहीं है, क्योंकि उसमें मिलन-शक्तिका अभाव है। इस कारण सूक्ष्म कालका समय नामका पर्याय पुलकी मंद गति से प्रगट जाना जाता है। जो कालाणु भिन्न नहीं होते, तथा उनमें मिलनेकी शक्ति होती तो समय-पर्याय कभी नहीं होता । अखंड एक द्रव्यके परिणमनसे तथा कालाणुके भिन्न होनेसे समय-भेद होता है । - परमाणु एक कालाणुसे दूसरे कालाणुमें जब जाता है, वहाँ भेद होता है । इसी लिये कालद्रव्यका समय-पर्याय पुद्गल - परमाणुको मंद गतिसे प्रगट होता है । और जो समय- पर्यायके उत्पन्न होनेसे न तो उत्पन्न होता है, न विनाश पाता है, आगे पीछे सदा नित्य है, वह कालाणु द्रव्यसमय है । तथा पर्याय-समय विनाशीक है, कालाणुरूप द्रव्य- समय नित्य है । पर्याय - समयसे अन्य कोई भी सूक्ष्म काल नहीं है, इस कारण समय निरंशी है, अर्थात् फिर उसका भेद नहीं होता, और जो समयके भी अंश (भाग) किये जावें, तो सूक्ष्म आकाशके प्रदेशोंके भी अंश हो जायेंगे, परंतु प्रदेश तो सबसे सूक्ष्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003289
Book TitlePravachanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1964
Total Pages612
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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