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________________ १७२ कुन्दकुन्दविरचितः [अ० २, गा० ४२समस्तजीवपुद्गलानामालोकाद्गमनहेतुखमप्रदेशखाकालपुद्गलयोः समुद्धातादन्यत्र लोकासंख्येयभागमात्रखाज्जीवस्य लोकालोकसीनोऽचलितखादाकाशस्य विरुद्धकार्यहेतुखादधर्मस्यासंभवद्धर्ममधिगमयति । तथैकवारमेव स्थितिपरिणतसमस्तजीवपुद्गलानामालोकात्स्थानहेतुखमप्रदेशत्वाकालपुद्गलयोः समुद्धातादन्यत्र लोकासंख्येयभागमात्रखाजीवस्य, लोकालोकसीम्नोऽचलितखादाकाशस्य, विरुद्धकार्यहेतुखाद्धर्मस्य चासंभवदधर्ममधिगमयति । तथा अशेषद्रव्याणां प्रतिपर्यायं समयवृत्तिहेतुलं कारणान्तरसाध्यखात्समयविशिष्टाया वृत्तेः स्वतस्तेषामसंभवत्कालमधिगमयति। तथा चैतन्यपरिणामश्चेतनखादेव शेषद्रव्याणामसंभवन् जीवमधिगमयति । एवं गुणविशेषाद्रव्यविशेषोऽधिगन्तव्यः ॥ ४१-४२॥ अथ द्रव्याणां प्रदेशवत्त्वाप्रदेशवत्वविशेषं प्रज्ञापयति जीवा पोग्गलकया धम्माधम्मा पुणो य आगासं । सपदेसेहिं असंखा णत्थि पदेस त्ति कालस्स ॥ ४३ ॥ द्रव्याणां युगपत्पर्यायपरिणतिहेतुत्वं विशेषगुणत्वादेवान्यद्रव्याणामसंभवत्कालद्रव्यं निश्चिनोति । सर्वजीवसाधारणं सकलविमलकेवलज्ञानदर्शनद्वयं विशेषगुणत्वादेवान्याचेतनपञ्चद्रव्याणामसंभवत्सच्छुद्धबुद्धैकस्वभावं परमात्मद्रव्यं निश्चिनोति । अयमत्रार्थः--यद्यपि पञ्च द्रव्याणि जीवस्योपकारं कुर्वन्ति तथापि तानि दुःखकारणान्येवेति ज्ञात्वा यदि वाक्षयानन्तसुखादिकारणं विशुद्धज्ञानदर्शनोपयोगस्वभावं परमात्मद्रव्यं तदेव मनसा ध्येयं वचसा वक्तव्यं कायेन तत्साधकमनुष्ठानं च कर्तव्यमिति ॥ ४१-४२ ॥ एवं कस्य द्रव्यस्य नहीं है, अधर्मद्रव्य जीव पुद्गलकी स्थितिको सहायता देनेवाला है, उसको गति सहायता विरुद्ध पढ़ती है, इस कारण अधर्मद्रव्यका भी गुण नहीं हो सकता । इसलिये यह गतिहेतु गुण एक धर्मद्रव्य ही को प्रगट दिखलाता है। उसी प्रकार एक ही बार स्थितिभावको परिणत हुए जीवपुद्गलोंको सि होना, ऐसा स्थितिहेतुत्व गुण एक अधर्मद्रव्यका ही है, क्योंकि कालपुद्गल अप्रदेशी और खंड हैं, इसलिये इन दोनोंका गुण नहीं हो सकता, और जीवद्रव्य समुद्घातके विना लोकप्रमाण होता ही नहीं, इससे जीवका भी गुण नहीं बन सकता, आकाशद्रव्य लोकालोक प्रमाण है, सो यदि आकाशका गुण माना जावे, तो अलोकमें भी जीवपुद्गलकी स्थिति होनी चाहिये, इसलिये आकाशका भी गुण नहीं सिद्ध हुआ। इस कारण स्थितिहेतुत्वनामा गुण अधर्मद्रव्यके ही अस्तिपनेको प्रगट करता है । तथा समस्त द्रव्योंके पर्यायोंको समय समयमें पलटानेका कारण वर्तनाहेतुत्वनामा गुण कालद्रव्यका है, क्योंकि अन्य पाँच द्रव्योंसे समय-पर्यायकी उत्पत्ति नहीं होती । इस कारण पाँच द्रव्योंका वर्तनाहेतुत्व गुण नहीं हैं, वह गुण केवल कालके ही अस्तित्वको कहता है। उसी प्रकार चेतना गुण जीवका ही है, क्योंकि अन्य पाँच द्रव्य अचेतन हैं, इसलिये उनका न होकर जीवका ही चिह्न होता हुआ जीवको प्रगट दिखलाता है। इस तरह गुणोंके भेदसे द्रव्यका भेद जानना चाहिये ॥ ४१-४२ ॥ आगे छह द्रव्योंमें प्रदेशी और अप्रदेशीपनेके भेदको दिखलाते हैं-[जीवाः] जीवद्रव्य [पुद्गलकायाः] पुद्गल स्कंध [पुनः] और का हेत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003289
Book TitlePravachanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1964
Total Pages612
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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