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प्रकाशकका निवेदन
( द्वितीय आवृत्ति )
अबसे लगभग २३ वर्ष पहले इस ग्रन्थका पहला संस्करण प्रकाशित हुआ था, जिसका सम्पादन संशोधन स्वर्गीय पंडित मनोहरलालजी शास्त्रीने किया था । इतने समयके बाद अब यह दूसरा संस्करण प्रकाशित हो रहा है । पाठक देखेंगे कि इसमें पहले संस्करणकी अपेक्षा अनेक विशेषताएं हैं, और वे बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं । इसका सम्पादन राजाराम कॉलेज कोल्हापुरके प्राकृत या अर्धमागधीके प्रोफेसर पं० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्याय, एम्. ए., ने किया है, जो अत्यन्त अध्ययनशील तथा परिश्रमी विद्वान् हैं । उनकी लिखी हुई १२५ पृष्ठोंकी अंग्रेजी भूमिका (Introduction) उनके असाधारण पांडित्य और दीर्घकालव्यापी अध्ययनको साक्षी देनेके लिये यथेष्ट है । जहाँतक हम जानते हैं, अबतक किसी भी जैनग्रन्थके सम्पादन, संशोधन और तुलनात्मक अध्ययनमें इतना परिश्रम नहीं किया गया है, और यही कारण है कि, बम्बई विश्वविद्यालयने ढाई सौ रुपयोंकी सहायता देकर इस ग्रन्थके सम्पादक तथा प्रकाशकका सम्मान बढ़ानेकी उदारत दिखलाई है ।
बम्बई विश्वविद्यालय में यह ग्रन्थ बहुत समयतक 'कोर्स' में रह चुका है । परन्तु इधर अप्राप्य हो जानेके कारण यह पठन क्रममें नहीं रहा था । आशा है कि, अब फिर कोर्समें रक्खा जायगा, और कॉलेजके विद्यार्थियों को इससे असाधारण लाभ होगा ।
अमरावती कॉलेजके संस्कृत प्रोफेसर बाबू हीरालालजी जैन, एम्. ए. एल्एल्. बी., ने ग्रन्थके सम्पूर्ण फार्मो हिन्दी प्रूफ देखनेका और पं० खूबचन्दजी शास्त्रीने ग्रन्थारंभके प्रूफ देखनेकी जो उदारता दिखलाई है, इसके लिए हम उक्त दोनों विद्वानोंके हृदयसे कृतज्ञ हैं ।
ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवनने ग्रन्थकी हस्तलिखित प्रतियाँ देकर संशोधन कार्यमें बहुत सहायता पहुँचाई है । इसलिये भवनके हम अत्यन्त आभारी हैं ।
प० प्र० मंडलकी तरफसे कई नये और पुराने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ सुसम्पादित होकर जल्दी छपेंगे ।
जौहरी बाजार, बम्बई. श्रावण कृ० ३० सं. १९९१
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निवेदकमणीलाल जौहरी
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