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________________ 20* प्रवचनसार यद्यपि पांडे (पंडित) हेमराजजीकृत यह बालबोधिनी वचनिका व्रजभाषापद्धतिके अनुसार बहुतही उत्तम और बालबोध है परंतु आजकलके नवीन हिन्दी भाषाके संस्कारक महाशयोंकी दृष्टि में यह भाषा सर्बदेशीय नहीं समझी जाती । इस कारण मैंने पंडित हेमराजकृत भाषानुवादके अनुसारही नयी सरल हिन्दी भाषामें अविकल अनुवाद किया है अर्थात् संस्कृतके हरएक पदके पीछे 'कहिये' शब्दको उठाने और बदलेमें संस्कृतपदोंको कोष्ठकमें रखने तथा भावार्थको एक जगह करनेके सिवाय अपनी ओरसे अर्थमें कुछ भी न्यूनाधिक नहीं किया है । किन्तु जहाँ २ मूल पाठ और अन्वयअर्थमें लेखकोंकी मूलसे कुछ छुट गया है उसको मैंने संस्कृत टीकाके अनुसार शुद्ध कर दिया है। इस ग्रन्थका जो उद्धार स्वर्गीय तत्त्वज्ञानी श्रीमान रायचन्द्रजीद्वारा स्थापित श्रीपरमश्रुत प्रभावक मंडलकी तरफसे हुआ है इसलिये उक्त मंडलके उत्साही प्रबन्ध कर्ताओंको "जिन्होंने अत्यंत उत्साहित होकर ग्रन्थ प्रकाशित कराके भव्यजीवोंको महान् उपकार पहुंचाया है" कोटिशः धन्यबाद देता हूं। और श्रीजीसे प्रार्थना करता हैं कि बीतरागदेवप्रणीत उच्च श्रेणीके तत्त्वज्ञानका इच्छित प्रसार करने में उक्त मंडल कृतकार्य होवे । द्वितीय धन्यवाद न्यायशीला गवर्नमेंटको दिया जाता है कि जिसने इस ग्रंथको अपने यूनिवर्सिटीके कोर्समें दाखिलकर इसका महत्व प्रगट किया है। अब मेरी अन्तमें यह प्रार्थना है कि जो प्रमादसे, दृष्टिदोषसे तथा ज्ञानावरणकर्मके क्षयोपशमकी न्यूनतासे कहींपर अशुद्धियां रहगई हो तो पाठक मेरे ऊपर क्षमा करके शुद्ध करते हुए पढ़ें क्योंकि 'को न विमुह्यति शास्त्रसमुद्रे' इस प्रसिद्ध वाक्यसे इस अध्यात्मिक ग्रंथमें अशुद्धियोंका रह जाना संभव है । इस तरह धन्यवादपूर्बक प्रार्थना करता हुआ इस प्रस्तावनाको समाप्त करता हूं। अलं विज्ञेषु । लार्डगंज जैन पाठशाला जबलपूर । माघकृष्णा १३ सं० २४३८ ) जैनसमाजका सेवक मनोहरलाल पाढम (मैनपुरी) निवासी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003289
Book TitlePravachanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1964
Total Pages612
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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