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प्रवचनसार
श्रीमद्जीने १९५६ में परमश्रुतके प्रचारार्थ एक सुन्दर योजना तैयार की थी, जिससे मनुष्य समाजमें परमार्थ प्रकाशित हो। इनकी विद्यमानतामें वह योजना सफल हुई। और तदनुसार 'परमश्रुत प्रभावक मंडल' की स्थापना हुई । इस मंडलकी ओरसे दोनो जैन सम्प्रदायोंके अनेक सद्ग्रन्थोंका प्रकाशन हुआ है। इन ग्रन्थोंके मनन, अध्ययनसे समाजमें अच्छी जागति आई है। गुजरात, सौराष्ट्र और कच्छमें आज घर घर सद्ग्रन्थोंका जो अभ्यास चालू है, वह इसी संस्था का प्रताप है । 'रायचन्द्र जैन ग्रन्थमाला' मंडलकी आधीनतामें काम करती थी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी इस संस्थाके ट्रस्टी और भाई रेवाशंकर जगजीवनदास मुख्य कार्यकर्ता थे । भाई रेबाशंकरजीके देहोत्सर्गके बाद कुछ शिथिलता आगई। परन्तु अब उस संस्थाका काम श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास, के ट्रस्टियोंने संभाल लिया है । और सुचारुरूप से सभी कार्य चल रहा है ।
श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम । अगास, व्हाया आणन्द (पश्चिम रेल्वे)
गुणभद्र जैन
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