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कुन्दकुन्दविरचितः
[अ० १, गा० १०तदा शुद्धारागपरिणतस्फटिकवत्परिणामस्वभावः सन् शुद्धो भवतीति सिद्धं जीवस्य शुभाशुभशुद्धत्तम् ॥९॥ अथ परिणामं वस्तुस्वभावत्वेन निश्चिनोति
णत्थि विणा परिणाम अत्यो अत्थं विणेह परिणामो । व्वगुणपज्जयत्थो अत्थो अस्थित्तणिवत्तो ॥१०॥ नास्ति विना परिणाममर्थोऽथ विनेह परिणामः ।
द्रव्यगुणपर्ययस्थोऽर्थोऽस्तिखनिवृत्तः ॥ १० ॥ न खलु परिणाममन्तरेण वस्तु सत्तामालम्बते । वस्तुनो द्रव्यादिभिः परिणामात् पृथगुपलम्भाभावानि परिणामस्य खरशृङ्गकल्पखाद् दृश्यमानगोरसादिपरिणामविरोधाच । अन्तरेण सासादनमिश्रगुणस्थानत्रये तारतम्येनाशुभोपयोगः, तदनन्तरमसंयतसम्यग्दृष्टिदेशविरतप्रमत्तसंयतगुणस्थानत्रये तारतम्येन शुभोपयोगः, तदनन्तरमप्रमत्तादिक्षीणकषायान्तगुणस्थानषट्के तारतम्येन शुद्धोपयोगः, तदनन्तरं सयोग्ययोगिजिनगुणस्थानद्वये शुद्धोपयोगफलमिति भावार्थः ॥ ९॥ अथ नित्यैकान्तक्षणिकैकान्तनिषेधार्थ परिणामपरिणामिनोः परस्परं कथंचिदभेदं दर्शयति–णत्थि विणा परिणाम अत्यो मुक्तजीवे तावत्कथ्यते—सिद्धपर्यायरूपशुद्धपरिणामं विना शुद्धजीवपदार्थो नास्ति। कस्मात् । संज्ञालक्षणप्रयोजनादिभेदेऽपि प्रदेशभेदाभावात् । अत्थं विणेह परिणामो मुक्तात्मपदार्थ विना इह जगति शुद्धात्मोपलम्भ[शुद्धेन तदा शुद्धो भवति] जब यह जीव आत्मीक वीतराग शुद्धभावस्वरूप परिणमता है, तब शुद्ध होता है । जैसे स्फटिकमणि जब पुष्पके संबंधसे रहित होता है, तब अपने शुद्ध (निर्मल) भावरूप परिणमन करता है । ठीक उसी प्रकार आत्मा भी विकार रहित हुआ शुद्ध होता है। इस प्रकार आत्मा के तीन भाव जानना ॥ ९॥
आगे वस्तुका स्वभावपरिणाम वस्तुसे अभिन्न (एकरूप) है, यह कहते हैं
[परिणाम विना अर्थः नास्ति] पर्यायके विना द्रव्य नहीं होता है। क्यों कि द्रव्य किसी समय भी परिणमन किये विना नहीं रहता, ऐसा नियम है । जो रहे, तो गधेके सींगके समान असंभव समझना चाहिये । जैसे गोरसके परिणाम दूध, दही, घी, तक्र (छांछ) इत्यादि अनेक हैं, इन निज परिणामोंके विना गोरस जुदा नहीं पाया जाता । जिस जगह ये परिणाम नहीं होते, उस जगह गोरसकी भी सत्ता ( मौजूदगी) नहीं होती। उसी तरह परिणामके विना द्रव्यको सत्ता (मौजूदगी) नहीं होती है। कोई ऐसा समझे कि, द्रव्यके विना परिणाम होता होगा, सो भी नहीं होता, [अर्थ विना परिणामो न] द्रव्यके विना परिणाम भी नहीं होता । क्योंकि परिणामका आधार द्रव्य है । जो द्रव्य ही न होवे, तो परिणाम किसके आश्रय रहे । यदि गोरस ही न होवे, तो दूध, दही, घी, तक्र इत्यादि पर्यायें कहाँसे होवें, इसी प्रकार द्रव्यके विना परिणाम अपनी मौजूदगीको नहीं पासकता है । तो कैसा पदार्थ अपने अस्तिपनेको पासकता है, [द्रव्यगुणपर्ययस्थः अर्थः] जो द्रव्य गुण पर्यायोंमें रहता
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