SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषयानुक्रमणिका ___129 पृ. गा.। विषय विषय पृ. गा. आत्माके स्वभावका कथन . १९५।६२ | आदिसे अंततक मुनिकी क्रियाओंके करपरद्रव्यके संयोगका कारण . १९७१६३ नेसे मुनिपदकी सिद्धि . २५५७ शुभोपयोगका स्वरूप . १९८०६५ मुनि किसी समयमें छेदोपस्थापक है . २५७४८ अशुभोपयोगका स्वरूप . . १९९६६ / दीक्षा देनेवालेकी तरह छेदोपस्थापक दूसरे परसंयोगके कारणका विनाश २००।६७ आचार्य भी होते हैं . . २५८।१० शरीरादि परम माध्यस्थ भाव . २००६८ संयम भंग होनेपर उसके जोड़नेका विधान २५९।११ शरीरादिको परद्रव्यत्वसिद्धि . २०२१६९ भंगका कारण परसंबंधका निषेध .२६१११३ परमाणुको पिंडरूप होनेका कारण . २०४।७१ | मुनिपदकी पूर्णताका कारण आत्मामें आत्मा पुद्गल पिंडका कर्ता नहीं है . २०८।७५ | लीनपना . २६२।१४ कर्मरूप पुद्गलोंका भी अकर्ता है . २१०७७ / सूक्ष्म परद्रव्यमें भी रागका निषेध . २६३३१५ शरीर भी जीवका स्वरूप नहीं है . २११३७९, संयमके छेदका स्वरूप . २६४११६ जीवका स्वरूप कथन . २१२।८० छेदके भेद . . २६५।१७ आत्माके बंधका हेतु . २१४१८१ अंतरंग छेदका सर्वथा निषेध • २६६।१८ भावबंध द्रव्यबंधका स्वरूप. २१७१८३ | परिग्रहका निषेध . २६८।१९ बंधका स्वरूप • २१८१८५ | अंतरंग छेदका निषेध ही परिग्रहका निषेध द्रव्यबंधका कारण राग परिणाम . २२१४८८ | है, यह कथन . . २७०१२० जीवका अन्य द्रव्योंसे भेद . | अंतरंगसंयमके घातका हेतु परिग्रह . २७१।२१ भेदविज्ञान होनेका कारण । . २२४.९१ परिग्रहमें अपवादमार्ग . .२७२।२२ आत्माका कार्य . . २२५।९२ / जिस परिग्रहका निषेध नहीं है, उसका प्रवगलकर्मोके विचित्रपनेका हेतु . २२८।९५ स्वरूप . • २७३१२३ अभेवबंधरूप आत्मा है . . २२९४९६ | उत्सर्गमार्ग ही वस्तुका धर्म है, अन्य नहीं है . २७४।२४ निश्चय व्यवहारका अविरोध २३०९७ अपवादमागके भेद .२७५१२५ अशुद्धात्माके लाभका हेतु . . २३११९८ शरीरमात्र परिग्रहके पालनकी विधि .२८०१२६ शुद्धात्माके लाभका हेतु . . २३२।९९ योग्य आहार अनाहार तुल्य है • २८१२२७ शुद्धात्मा उपादेय है . . २३३११०० योग्य अहारादिका स्वरूप . .२८।२८ आत्मासे अन्य हेय हैं . . २३५।१०१ उत्सर्ग और अपवादमार्गमें मैत्रीभाव होशुद्धात्माको प्राप्तिसे लाभ . २३६।१०२ नेसे मुनिपदकी स्थिरता . . २८५।३० मोह-ग्रंथिके खुलनेसे लाभ इन दोनोंमें विरोध होनेसे मुनिपदकी . २३७४१०३ अस्थिरता .२८८१३१ ध्याताका स्वरूप . २३८।१०४ सर्बज्ञानीके ध्यानका विषय मोक्षमार्गका मूलसाधन आगम . २९११३२ . २३९।१०५ शुद्धात्माकी प्राप्ति मोक्षमार्ग है आगमहीनके कर्मक्षयका निषेध . २९३३३३ .२४११०७ ग्रंथकर्ताकी शुद्धात्मप्रवृत्ति . मोक्षमार्गी जीवोंको आगम ही नेत्र है, . २४२।१०८ यह कथन . . २९५।३४ ३. चारित्राधिकारः आगम-चक्षुसे ही सर्वका दीखना .२९६३३५ मंगलाचरणपूर्वक कर्तव्यकी प्रेरणा . २४६।१ आगमज्ञानादि तीनोंसे मोक्षमार्ग . २९७।३६ मुनिवीक्षाके पूर्व कर्तव्य . . २४८०२ आत्म-ज्ञानका मोक्षमार्गमें मुख्य हेतुपना. ३००।३८ श्रमणका लक्षण . २५०३ आत्मज्ञानसे रहित पुरुषके आगमज्ञानादि द्रव्य-भालिंगका लक्षण '. . २५३३५ निष्फल हैं • ३०११३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003289
Book TitlePravachanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1964
Total Pages612
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy