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________________ 128 प्रवचनसार विषय पृ. गा. विषय पृ. गा पुण्य दुःखका कारण है . . ८४१७४ गणगणीमें एकता . . १३९।१८ फिर भी पुण्यजन्य इन्द्रिय-सुखको दुःखरूप दो तरहके उत्पादोंमें अविरोध . १३९।१९ होनेका कथन . . ८६७६ सत्पादका पर्यायसे अभेद . . . १४२।२० पुण्य और पापमें समानता . . ८७७७ | असदुत्पादका पर्यायसे भेद . . १४३।२१ इन दोनोंमें समानता जाननेसे ही शुद्धोप सब विरोधोंको दूर करनेवाली सप्तभंगीयोगकी प्राप्ति . . ८८१७८ नयका कथन . .१४६४२३ मोहादिके दूर करनेसे ही आत्म-लाभ . ८९७९ मनुष्यादि पर्याय क्रिया फल होनेसे वस्तु-स्वभावसे मोहकी सेनाके जीतनेका उपाय . ९११८० | भिन्नता तथा क्रिया-फलका कथन १४७।२४ प्रमादरूप चोरके कारण सावधान रहना। मनष्यादि पर्यायोंसे स्वभावका तिरोभाव १५०१२६ चाहिये . • ९२१८१ जीवका पर्यायसे अनवस्थितपना . १५१०२७ अपने स्वरूपका अनुभव करनेसे ही मोक्षकी अनवस्थितपनेमें हेतु . १५३।२८ प्राप्ति होती है, ऐसा कथन . ९३।८२ आत्माका पुद्गलके साथ संबंध होनेका कथन १५४॥२९ शुद्धात्माके लाभका शत्रु मोह है . ९४८३ | निश्चयसे आत्मा द्रव्यकर्मका अकर्ता है . १५५।३० मोहका क्षय करना कर्तव्य है . ९५।८४ । आत्माका परिणमन स्वरूप .१५७।३१ मोहके तीन भाव भी क्षय करने चाहिये . ९६८५ | ज्ञानादि तीन तरहको चेतनाका स्वरूप . १५७१३२ जैनमतमें पदार्थोंकी व्यवस्था . ९८४८७ द्रव्यके सामान्य कथनका उपसंहार .१६०१३४ मोहके नाशके उपायमें पुरुषार्थ कार्यकारी है ९९।८८ द्रव्यका विषेश कथन . .१६२।३५ स्वपरभेद-विज्ञानसे मोहका क्षय . १००।८९ लोक अलोकका लक्षण . १६३१३६ भेदविज्ञान आगमसे होता है .१०११९० कौन द्रव्य क्रियावाले हैं ? . . १६४।३७ बीतरागकथित पदार्थोके श्रद्धा विना द्रव्यमें भेद, गुणके भेदसे है. . १६६।३८ आत्म-धर्मका लाभ नहीं होता . १०२।९१ | मूर्त अमूर्त गुणोंका लक्षण . . १६७४३९ आचार्यकी धर्ममें स्थित होनेकी प्रतिज्ञा . १०४।९२ | पुद्गल द्रव्यके गुण . १६७४४० २. ज्ञेयतत्त्वाधिकारः अमूर्त द्रव्योंके गुण . १७०।४१ पदार्थोको द्रव्य गुण पर्याय स्वरूप होना . १०८।१ । द्रव्योंके प्रदेशी अप्रदेशी भेद . • १७२।४३ स्वसमय परसमयका कथन . .११०१२ | द्रव्योंके रहनेका स्थान . १७४।४४ द्रव्यका लक्षण . . .११२।३ कालाणुका अप्रदेशीपना . . १७६।४६ अस्तित्वके भेदोंका स्वरूप . . ११५।४ कालपदार्थके पर्याय . १७७४४७ द्रव्यसे अन्य द्रव्यकी उत्पत्तिका अभाव तथा प्रदेशका लक्षण . • १८०१४८ द्रव्यसे सत्ताके जुदेपनका अभाव . ११९०६ कालपदार्थका प्रदेश-मात्र होना • १८५।५२ द्रव्यके सत्पनेका कथन . .१२७ व्यवहार जीवपनका कारण . . १८८१५३ उत्पादादिका आपसमें अविनाभाव सम्बंध १२३३८ प्राणोंकी संख्या . १८९।५४ उत्पादादिकोंका द्रव्यसे अभेद . १२५।९ प्राणोंके पुद्गलोकपनकी सिद्धि . १९०५६ अनेक द्रव्योंके तथा एक द्रव्यके पर्यायोंद्वारा नवीन कर्मके कारण प्राण हैं . १९११५७ उत्पादादिका कथन . .१२९।११ | प्राणोंकी उत्पत्तिका अंतरंग कारण . १९२१५८ सत्ता और द्रव्यके एकत्वमें युक्ति . १३११३ | प्राणोंकी संतानका नाशक अंतरंग कारण. १९३३५९ भेदोंके भेदोंका लक्षण .१३।१४ | जीवके व्यवहार पर्यायका स्वरूप व भेदका सत्ता और द्रव्यका परस्पर गुणगुणोपना . १३७॥१७ / कथन : १९४१६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003289
Book TitlePravachanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1964
Total Pages612
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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