________________
130
प्रवचनसार
विषय
पृ. गा. विषय
पृ. गा. आत्मज्ञान और आगमज्ञानादिवाले पुरुषका श्रमणाभासोंकी सेवाका निषेध
• ३२३१६३ स्वरूप . . .३०३।४० श्रमणाभासका लक्षण
.३२४१६४ आत्मज्ञान और आगमज्ञानादिकी एकता जो दूसरे मुनिको देखकर द्वेष करता है, . ही मोक्षमार्ग है
.३०५।४२ | उसके चारित्रका नाश हो जाता है. ३२५।६५ एकताके न होनेसे मोक्षमार्ग भी नहीं है. ३०७।४३ जो मुनि अधिक गुणवालेसे विनय चाहता आगमज्ञानादिकी एकता ही मोक्षमार्ग है
है, वह अनंतसंसारी हैं . ३२६१६६ ऐसे सारांशका कथन . .३०८।४४ | अपनेसे गुणहीनकी विनय सेवा करनेसे शुभोपयोगीको मुनिपदसे जघन्यपना .३०९।४५ . भी चारित्रका नाश होता है . ३२७।६७ शुभोपयोगी मुनिका लक्षण . .३१०॥४६ कुसंगतिका निषेध
.३२७।६८ शुभोपयोगीकी प्रवृत्ति . . ३११४७ लौकिकजनका लक्षण
. ३२९६९ शुभोपयोगीके ही पूर्वोक्त्त प्रवृत्तियाँ . ३१२०४९ सत्संगति करने योग्य है।
.३२९/७० संयम-विरोधी प्रवत्तिका निषेध . ३१३१५० संसारतत्त्वका कथन
. ३३११७१ परोपकार प्रवृत्तिके पात्र . ३१४१५१ मोक्षतत्त्वका कथन
. ३३२१७२ प्रवृत्तिके कालका नियम . . ३१५१५२ मोक्षतत्त्वके साधनतत्त्वका कथन .३३३३७३ वैयावृत्त्यके कारण अज्ञानी लोगोंसे भी
मोक्षतत्त्वका साधनतत्त्व सब मनोरथोंका बोलना पड़ता है . .३१६१५३ स्थान है .
.३३४१७४ शुभोपयोगके गौण और मुख्य भेद . ३१७१५४ | शिष्यजनोंको शास्त्रका फल दिखलाकर शुभोपयोगके कारण विपरीत होनेसे
शास्रकी समाप्ति . . ३३५।७५ फलमें विपरीतपना . .३१८०५५ आत्माकी पहचानके लिये ४७ नयोंका उत्तम फलका कारण उत्तम पात्र है, यह
कथन .
. ३३६० कथन . .३२११५९ । टीकाओंकी समाप्ति
३४३१० उत्तम पात्रोंकी सेवा सामान्य विशेषपनेसे
प्रशस्तियाँ
. . ३४५१० दो तरहकी है
. ३२२१६१
इति विषयानुक्रमणिका
5
Page
Line
Read
१८
१२५ १७२
केवलज्ञातं भूतमुद्दयोतमान पोग्गलकाया ध्रौव्यवत्वं जिदकसाओ
१८४
३०३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org