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________________ ज्ञानभाण्डारोंमें उपलब्ध सामग्री ये ज्ञानभाण्डार विविध दृष्टिसे समृद्ध और महत्त्वके हैं । इनकी मुख्य विशेषता यह है कि इनका संग्रह यद्यपि जैनोंने किया है फिर भी वे मात्र जैनशास्त्रोंके संग्रह तक ही मर्यादित नहीं हैं। उनमें जैन-जैनेतर अथवा वैदिक-बौद्ध-जैन, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, गुजराती, हिन्दी, मराठी, फारसी आदि भाषाओंका तथा जैन-जैनेतर ऋषि-स्थविर-आचार्योंके रचे हुए धर्मशास्त्रोंके अतिरिक्त व्याकरण, कोश, छन्द, अलंकार, मंत्र, तंत्र, कल्प, नाट्य, नाटक, ज्योतिष, लक्षण, आयुर्वेद, दर्शन एवं संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाके चरित्र-ग्रन्थ, रास आदि विविध साहित्य विद्यमान है। संक्षेपमें हमें यह कहना चाहिए कि इन भाण्डारोंका सच्चा महत्त्व इनकी व्यापक और विशाल संग्रहदृष्टिके कारण ही है। जिस तरह इन विशाल ज्ञानभाण्डारोंमें विविध प्रकारके लेखन-संशोधन-रक्षण विषयक साधन एवं संग्रह है उसी प्रकार ताड़पत्र, कागज़ और कपड़ेके ऊपर काली, लाल, सुनहरो, रुपहरी आदि अनेक प्रकारको स्याहीसे लिखे हुए अनेक आकार-प्रकारके अत्यन्त सुन्दर और कलापूर्ण सचित्र-अचित्र पत्राकार, गुटकाकार कुंडली-आकार लिखे हुए ग्रन्थ विद्यमान हैं। अनेक प्रकारके सचित्र-अचित्र विज्ञप्तिपत्र, तीर्थयात्रादिके चित्रपट, यंत्रपट, विद्यापट आदिका विशाल संग्रह इन भाण्डारोंमें है। जैनोंने इन भाण्डारोके सग्रहके लिये हार्दिक मनोयोगके साथ ही साथ अपनी सम्पत्ति पानीकी नाई बहाई है। इसी तरह इनके संरक्षणके लिये भी उन्होंने सब शक्य उपाय किए हैं। इस प्रकार ज्ञानभाण्डार, उनम उपलब्ध सामग्रा एव ग्रन्थरााश तथा उनकी व्यवस्था आदिके बारेमें हमने संक्षिप्त वर्णन यहाँ पर किया। विशाल एवं वैविध्यपूर्ण इन ग्रन्थरत्नोंका परीक्षक सम्यक् उपयोग करें - यही हमारी आन्तरिक अभिलाषा है। २८] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003284
Book TitleGyanbhandaro par Ek Drushtipat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1953
Total Pages30
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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