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ये दूसरे साधनोंकी तरह उसने एक पर्व-दिवसको भी अधिक महत्त्व दिया। ह पर्व है ज्ञानपंचमी - कार्तिक शुक्ला पंचमीका दिन । समूचे वर्षकी सर्दी, रमी तथा नमी जैसी ऋतुओंकी विविध असरों से गुज़री हुई शास्त्रराशिको दि उलट-पुलट न किया जाय तो वह असमयमें ही नाशाभिमुख हो जाय ।
तः उसे बचानेके लिये उसकी हेरफेर वर्षमें एक बार अवश्य करनी चाहिए जससे उनमेंकी अनेकविध विकृत असर दूर हो और शास्त्र कायमी आरोग्य
शामें रहें । परन्तु विशाल ज्ञानभाण्डारोंके उलटफेरका यह काम एकाध पक्तिके लिए दुष्कर और थकानेवाला न हो तथा अनेक व्यक्तिओंका सहयोग नायास ही मिल सके इसलिये इस धर्म-पर्वकी योजना की गई है। आज स धार्मिक पर्वको जो महत्त्व दिया जाता है उसके मूलमें प्रधान रूपसे तो ही उद्देश था, परन्तु मानवस्वभावके स्वाभाविक छिछलेपन तथा निरुद्यमीनके कारण इसका मूल उद्देश विलुप्त हो गया है और उसका स्थान बाहरी देखावे एवं स्थूल क्रियाओंने ले लिया है।
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