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________________ 6 उकौर स्याहीसे खींची हुई दीख पड़ती है । इस परसे ऐसा मालूम होता है कि जबतक ‘ओलिया ' जैसे साधनकी शोध नहीं हुई होंगी अथवा वह जबतक व्यापक नहीं हुआ होगा तबतक उपर्युक्त तरीके से अथवा उससे मिलते-जुलते किसी दूसरे तरीके से काम लिया जाता होगा । परन्तु ग्रन्थ-लेखन के लिये कागज़ व्यापक बननेपर लिखाई सरलता से सीधी लिखी जा सके इसलिये 'ओलिया' बनाने में आया । यह ओलिया ', गत्ता अथवा लकड़ीक पतली पट्टी में समानान्तर सुराख़ करके और उनमें धागा पिरोकर उसपर - बागा इधर उधर न हो जाय इसलिये श्लेष ( गोंद जैसे चिकने ) द्रव्य लगाकर बनाया जाता था । इस तरीके से तैयार हुए ओलिएके ऊपर पन्न रखकर एकके बाद दूसरी इस तरह समूची पंक्ति पर उँगली से दबाकर लकी खींची जाती थी । लकीर खींचनेके इस साधनको 'ओलिया ' अथव 'फॉटिया' कहते हैं । गुजरात और मारवाड़के लहिए आज भी इस साध नका व्यापकरूपसे उपयोग करते हैं । इस साधनद्वारा तह लगाकर खींच हुई लकीरें प्रारम्भ में आजकल के वोटरकलरकी लकीरोंवाले कागज़की लकी जैसी देखाई देती हैं, परन्तु पुस्तक ने ना नह बैर जाने पर लिखा वट स्वाभाविकसी दीख पडती है , जुजवल और प्राकार पन्ना ऊपर अथवा यंत्रपट आदि में लकीरें खींचनेके लिये यदि कल मका उपयोग किया जाय तो उसकी बारीक नोक थोड़ी ही देर में कूँची जैस हो जाय । इसलिये हमारे यहाँ प्राचीन समय में लकीरें खींचनेके लिये 'जुजवल' का प्रयोग किया जाता था । इसका अग्रभाग चिमटेकी तरह द तरफ मोड़कर बनाया जाता है। इसलिये इसे 'जुजवल' अथवा 'जुजबल' कहते हैं । यह किसी-न-किसी धातुका बनाया जाता है । इसी तरह यंत्र - पटादिमें गोल आकृति खींचनेके लिये प्राकार ( परकाल, अंo Compass ) 'ओलिया' यह नाम संस्कृत 'आलि' अथवा 'आवलि' प्राकृत '"" और गुजराती 'ओल' द परसे बना है । C Jain Education International For Private & Personal Use Only Re www.jainelibrary.org
SR No.003284
Book TitleGyanbhandaro par Ek Drushtipat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1953
Total Pages30
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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