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Yoga sysyem 279 Jain Sadhana and Yoga 280 The Teaching Arhat Parsva and the Distinctness
of his Sect 281 Introduction of Lord Mahavira 282 Role of Religion in unity of Mankind and
Word Peace 283 Jaina Literature 284 How appropriate is the proposition of Neo
Digambaraschool? 285 Jaina Canonical Literature
Arhat Parsva and Dharanedra Nexus Institute Delhi P.V.RI. Varanasi Jain Journal Vol-XLI No.4, 2007
Jain Journal Vol-XLIII No.1,2008
JainJournal Vol-XLINo.3,2007 Jainadharma Darshana avam Samskriti Vol-7
286 An investigation of the earlier subject
matter of Prasnavyakarana Sutra 287 Risibhasita-Avaluable Jain Work 288 Same Refelction on Samansuttam 289 Risibhasita- A Prakrit work of Universal Values
Jinvani Nov-2010 JinvaniOct-2011 Jinvani July-August 2011
डॉ. सागरमल जैन द्वारा सम्पादित ग्रन्थ - 1. रत्न ज्योति
स्थानकवासी जैन संघ, । 1970
शाजापुर 2. चिन्तन के नये आयाम
सौभाग्यमल जी, स्था. जैन | 1971
कान्फरेन्स, देहली 3. |जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
पा.वि. वाराणसी
1981 4. हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास पा.वि. वाराणसी
1989 5. जैन योग को आलोचनात्मक अध्ययन पा.वि. वाराणसी
1982 6. आनन्दघन का रहस्यवाद
पा.वि. वाराणसी
1982 7. प्राकृत दीपिका
पा.वि. वाराणसी
1982 8. जैनदर्शन में आत्मविचार
पा.वि. वाराणसी
1984 9. खजुराहो के जैन मन्दिरों की मूर्तिकला पा.वि. वाराणसी
1984 10. जैनाचार्यों का अलंकार शास्त्र में अवदान पा.वि. वाराणसी
1984 11. वज्जालग्गं
पा.वि. वाराणसी
1984 12. जैन और बौद्ध भिक्षुणी संघ
पा.वि. वाराणसी
1986 13. आचारांगसूत्र : एक अध्ययन
पा.वि. वाराणसी
1987 14. मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन पा.वि. वाराणसी
1987 15. तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार
पा.वि. वाराणसी
1988 16. स्याद्वाद और सप्तभंगी
पा.वि. वाराणसी 17. संबोध सप्ततिका
पा.वि. वाराणसी
1988
1988
डॉ. सागरमल जैन - एक परिचय : 42
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