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115 महावीर का जीवन दर्शन
श्रमण, अप्रेल 1986 116 भगवान् महावीर का अपरिग्रह सिद्धान्त सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि.
और उसकी उपादेयता (211499) वाराणसी 117 भाग्य बनाम पुरुषार्थ
श्रमण, जुलाई 1985 118 भारतीय दर्शन में सामाजिक चेतना (211551) सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि.
वाराणसी 119 भारतीय संस्कृति का समन्वित स्वरूप सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. (211578)
वाराणसी 120 भेद-विज्ञान : मुक्ति का सिंहद्वार (211605) सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि.
वाराणसी 121 मन शक्ति स्वरूप और साधना : । सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. एक विश्लेषण (211625)
वाराणसी 122 मानवतावाद और जैन आचार दर्शन तीर्थकर, जनवरी 1978 123 महापण्डित राहुल सांस्कृत्यायन के जैन धर्म | सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि.
सम्बन्धी मन्तव्यों की समालोचना (211650) वाराणसी 124 महावीर का दर्शन : सामाजिक परिप्रेक्ष्य में श्रमण, अप्रेल 1981 125 महावीर कालीन विभिन्न आत्मवाद एवं जैन सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि.
आत्मवाद का वैशिष्ट्य (211670) वाराणसी 126 महावीर के सिद्धान्त : आधुनिक सन्दर्भ में महावीर जयन्तीस्मारिका, जयपुर1976 127 मूलाचारः एक विवेचन (211734) सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि.
वाराणसी 128 मूल्य बोध की सापेक्षता
दार्शनिक, अक्टूम्बर 1977 129 मूल्य दर्शन और पुरुषार्थ चतुष्टय (211738) |सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि.
वाराणसी 130 रामपुत्त या रामगुत्तः सूत्रकृतांग के संदर्भ सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. में (211845)
वाराणसी 131 व्यक्ति और समाज
सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि.
वाराणसी 132 श्रमण एवं वैदिक धारा का विकास एवं । सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि.
पारस्परिक प्रभाव (2122025) .. वाराणसी 133 श्रावक आचार (धर्म) की प्रासंगिकता का सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि.
डॉ. सागरमल जैन- एक परिचय : 33
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